षड़र्विंश (26) अध्याय: स्त्री पर्व (श्राद्ध पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: षड़र्विंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
उस समय धर्मज्ञ राजर्षि धृतराष्ट्र ने अज्ञान से उत्पन्न होने वाले शोक और मोह को रोककर धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा- पाण्डुनन्दन! तुम जीवित सैनिकों की संख्या के जानकार तो हो ही। यदि मरे हुओं की संख्या जानते हो तो मुझे बताओ। युधिष्ठिर बोले- राजन! इस युद्ध में एक अरब छाछठ करोड़, बीस हजार योद्धा मारे गये हैं। राजेन्द्र! इनके अतिरिक्त चौबीस हजार एक सौ पैंसठ सैनिक लापता हैं। धृतराष्ट्र ने पूछा- पुरुषप्रवर! महाबाहु युधिष्ठिर! तुम तो मुझे सर्वज्ञ जान पड़ते हो; अतः यह तो बताओ कि वे मरे हुए सैनिक किस गति को प्राप्त हुए हैं। युधिष्ठिर ने कहा- जिन लोगों ने इस महासमर में बड़े हर्ष और उत्साह के साथ अपने शरीरों की आहुति दी है, वे सत्य पराक्रमी वीर देवराज इन्द्र के समान लोकों में गये हैं। भारत! जो अप्रसन्न मन से मरने का निश्चय करके रणक्षेत्र में जूझते हुए मारे गये हैं, वे गन्धर्वों के साथ जा मिले हैं। जो संग्राम भूमि में खड़े हो प्राणों की भीख माँगते हुए युद्ध से विमुख हो गये थे; उनमें से जो लोग शस्त्र द्वारा मारे गये हैं, वे गुह्यकलोकों में गये हैं। जिन महामनस्वी पुरुषों को शत्रुओं ने गिरा दिया था, जिनके पास युद्ध करने को कोई साधन नहीं रह गया था, जो शस्त्रहीन हो गये थे और उस अवस्था में भी लज्जाशील होने के कारण जो रणभूमि निरन्तर शत्रुओं का सामना करते हुए ही तीखे अस्त्र-शस्त्रों से कट गये, वे क्षत्रिय धर्मपरायण पुरुष ब्रह्मलोक में गये हैं, इस विषय में मेरा कोई दूसरा विचार नहीं है। राजन! इनके सिवा, जो लोग इस युद्ध की सीमा के भीतर रहकर जिस किसी भी प्रकार से मारे डाले गये हैं, वे उत्तर कुरुदेश में जन्म धारण करेंगे। धृतराष्ट्र ने पूछा- बेटा! किस ज्ञान वल से तुम इस तरह सिद्व पुरुषों के समान सब कुछ प्रत्यक्ष देख रहे हो। महाबाहो! यदि मेरे सुनने योग्य हो तो बताओ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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