महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 26 श्लोक 1-18

षड़र्विंश (26) अध्याय: स्‍त्री पर्व (श्राद्ध पर्व)

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महाभारत: स्त्री पर्व: षड़र्विंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद


प्राप्त अनुस्मृति विद्या और दृष्टि के प्रभाव से युधिष्ठिर का महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन तथा युधिष्ठिर की आज्ञा से सबका दाह संस्कार


श्रीभगवान बोले- गान्धारी! उठो, उठो। शोक में मन को न डुबाओ। तुम्हारे ही अपराध से कौरवों का विनाश हुआ है। तुम्हारा पुत्र दुर्योधन दुरात्मा, दूसरों से ईर्ष्या एवं जलन रखने वाला और अत्यन्त अभिमानी था। दुष्कर्म परायण, निष्ठुर, वैर का मूर्तिमान स्वरूप और बड़े-बूढों की आज्ञा का उल्लंघन करने बाला था। तुमने उसको अगुआ बनाकर जो अपराध किया है, उसे क्या तुम अच्छा समझती हो? अपने ही किये हुए दोषों को यहाँ मुझ पर कैसे लादना चाहती हो? यदि कोई मनुष्य किसी मरे हुए सम्बन्धी, नष्ट हुई वस्तु अथवा बीती हुई बात के लिये शोक करता है तो वह एक दुख से दूसरे दुख का भागी होता है, इस प्रकार वह दो अनर्थों को प्राप्त होता है। ब्राह्मणी तप के लिये, गाय बोझ ढोने के लिये, घोड़ी वेग से दौड़ने के लिये, शूद्रा सेवा के लिये, वैश्य कन्या पशुपालन के लिये और तुम जैसी राज पुत्री युद्ध में लड़कर मरने के लिये पुत्र पैदा करती हैं। वैशम्पयान जी कहते हैं- जनमेजय! श्रीकृष्ण का दोबारा कहा हुआ वह अप्रिय वचन सुनकर गान्धारी चुप हो गयी उसके नेत्र शोक से व्याकुल हो उठे थे।

उस समय धर्मज्ञ राजर्षि धृतराष्ट्र ने अज्ञान से उत्पन्न होने वाले शोक और मोह को रोककर धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा- पाण्डुनन्दन! तुम जीवित सैनिकों की संख्या के जानकार तो हो ही। यदि मरे हुओं की संख्या जानते हो तो मुझे बताओ। युधिष्ठिर बोले- राजन! इस युद्ध में एक अरब छाछठ करोड़, बीस हजार योद्धा मारे गये हैं। राजेन्द्र! इनके अतिरिक्त चौबीस हजार एक सौ पैंसठ सैनिक लापता हैं।

धृतराष्ट्र ने पूछा- पुरुषप्रवर! महाबाहु युधिष्ठिर! तुम तो मुझे सर्वज्ञ जान पड़ते हो; अतः यह तो बताओ कि वे मरे हुए सैनिक किस गति को प्राप्त हुए हैं।

युधिष्ठिर ने कहा- जिन लोगों ने इस महासमर में बड़े हर्ष और उत्साह के साथ अपने शरीरों की आहुति दी है, वे सत्य पराक्रमी वीर देवराज इन्द्र के समान लोकों में गये हैं। भारत! जो अप्रसन्न मन से मरने का निश्‍चय करके रणक्षेत्र में जूझते हुए मारे गये हैं, वे गन्धर्वों के साथ जा मिले हैं। जो संग्राम भूमि में खड़े हो प्राणों की भीख माँगते हुए युद्ध से विमुख हो गये थे; उनमें से जो लोग शस्त्र द्वारा मारे गये हैं, वे गुह्यकलोकों में गये हैं। जिन महामनस्वी पुरुषों को शत्रुओं ने गिरा दिया था, जिनके पास युद्ध करने को कोई साधन नहीं रह गया था, जो शस्त्रहीन हो गये थे और उस अवस्था में भी लज्जाशील होने के कारण जो रणभूमि निरन्तर शत्रुओं का सामना करते हुए ही तीखे अस्त्र-शस्त्रों से कट गये, वे क्षत्रिय धर्मपरायण पुरुष ब्रह्मलोक में गये हैं, इस विषय में मेरा कोई दूसरा विचार नहीं है। राजन! इनके सिवा, जो लोग इस युद्ध की सीमा के भीतर रहकर जिस किसी भी प्रकार से मारे डाले गये हैं, वे उत्तर कुरुदेश में जन्म धारण करेंगे। धृतराष्ट्र ने पूछा- बेटा! किस ज्ञान वल से तुम इस तरह सिद्व पुरुषों के समान सब कुछ प्रत्यक्ष देख रहे हो। महाबाहो! यदि मेरे सुनने योग्य हो तो बताओ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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