त्रयोदश (13) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्रीपर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
राजन! आप अपने मन को वश में न करके सदा दुर्योधन के अधीन रहे हैं। अपने ही अपराध से विपत्ती में पड़कर आप भीमसेन को क्यों मार डालना चाहते हैं? इसलिये क्रोध को रोकिये और अपने दुष्कर्मों को याद कीजिये। जिस नीच दुर्योधन ने मन में जलन रखने के कारण पांचाल राजकुमारी कृष्णा को भरी सभा में बुलाकर अपमानित किया, उसे वैर का बदला लेने की इच्छा से भीमसेन ने मार डाला। आप अपने और दुरात्मा पुत्र दुर्योधन के उस अत्याचार पर तो दृष्टि डालिये, जबकि बिना किसी अपराध के ही आपने पाण्डवों का परित्याग कर दिया था’। वैशम्पायन जी कहते हैं- 'नरेश्वर! जब इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने सब सच्ची-सच्ची बातें कह डालीं, तब पृथ्वीपति धृतराष्ट्र ने देवकीनन्दन श्रीकृष्ण से कहा- ‘महाबाहु! माधव! आप जैसा कह रहे हैं, ठीक ऐसी ही बात है; परंतु पुत्र का स्नेह प्रबल होता है, जिसने मुझे धैर्य से विचलित कर दिया था। श्रीकृष्ण! सौभग्य की बात है कि आपसे सुरक्षित होकर बलवान सत्यपराक्रमी पुरुषसिंह भीमसेन मेरी दोनों भुजाओं- के बीच में नही आये। माधव! अब इस समय मैं शान्त हूँ। मेरा क्रोध उतर गया है और चिन्ता भी दूर हो गयी है; अत: मैं मध्यम पाण्डव वीर अर्जुन को देखना चाहता हूँ। समस्त राजाओं तथा अपने पुत्रों के मारे जाने पर अब मेरा प्रेम और हितचिन्तन पाण्डु के इन पुत्रों पर ही आश्रित है’। तदनन्तर रोते हुए धृतराष्ट्र ने सुन्दर शरीर वाले भीमसेन, अर्जुन तथा माद्री के दोनों पुत्र नरवीर नकुल-सहदेव को अपने अंगों से लगाया और उन्हें सान्तवना देकर कहा- ‘तुम्हारा कल्याण हो’। इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्री पर्व के अन्तर्गत जलप्रदानिक पर्व में ‘धृतराष्ट्र का क्रोध छोड़कर पाण्डवों को हृदय से लगाना’ नामक तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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