एकोनपंचाशदधिकशततम (149) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनपंचाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
श्रीकृष्ण! गोविन्द! सौभाग्यवश आपके द्वारा सुरक्षित हुए अर्जुन ने पापी जयद्रथ को मारकर मुझे महान हर्ष प्रदान किया है। परंतु जिनके आप आश्रय हैं, उन हम लोगों के लिये विजय और सौभाग्य की प्राप्ति अत्यन्त अद्भुत बात नहीं है। मधुसूदन! सम्पूर्ण जगत के गुरु आप जिनके रक्षक हैं, उनके लिये तीनों लोको में कहीं कुछ भी दुश्कर नहीं है। गोविन्द! हम आपकी कृपा से शत्रुओं पर निश्चय ही विजय पायेंगे। उपेन्द्र! आप सदा सब प्रकार से हमारे प्रिय और हित-साधन में लगे हुए हैं। हम लोगों ने आपका ही आश्रय लेकर शस्त्रों द्वारा युद्ध की तैयारी की है; ठीक उसी तरह, जैसे देवता इन्द्र का आश्रय लेकर युद्ध में असुरों के वध का उद्योग करते हैं। जनार्दन! आपकी ही बुद्धि, बल और पराक्रम से इस अर्जुन ने यह देवताओं के लिये भी असम्भव कर्म कर दिखाया है। श्रीकृष्ण! बाल्यावस्था से ही आपने जो बहुत से अलौकिक, दिव्य एवं महान कर्म किये हैं, उन्हें जब से मैंने सुना है, तभी से यह निश्चित रूप से जान लिया है कि मेरे शत्रु मारे गये और मैंने भूमण्डल का राज्य प्राप्त कर लिया। शत्रुसूदन! आपकी कृपा से प्राप्त हुए पराक्रम द्वारा इन्द्र सहस्रों दैत्यों का संहार करके देवराज के पद पर प्रतिष्ठित हुए हैं। वीर ऋषीकेश! आपके ही प्रसाद से यह स्थावर- जंगम रूप जगत अपनी मर्यादा में स्थित रहकर जप और होम आदि सत्कर्मों में संलग्न होता है। महाबाहो! नरश्रेष्ठ! पहले यह सारा जगत एकार्णव के जल में निमग्न हो अन्धकार में विलीन हो गया था। फिर आपकी ही कृपा दृष्टि से यह वर्तमान रूप में उपलब्ध हुआ है।। जो सम्पूर्ण जगत की सृष्टि करने वाले आप अविनाशी परमात्मा ऋषीकेश का दर्शन पा जाते हैं, वे कभी मोह के वशीभूत नहीं होते हैं। आप पुराण पुरुष, परमदेव, देवताओं के भी देवता, देवगुरु एवं सनातन परमात्मा हैं। जो लोग आपकी शरण में जाते हैं, वे कभी मोह में नहीं पड़ते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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