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महाभारत: द्रोण पर्व: षट्सप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
अर्जुन के वीरोचित वचन
- अर्जुन बोले– मधुसूदन! दुर्योधन के जिन छ: महारथियों को आप बल में अधिक मानते हैं, उनका पराक्रम मेरे आधे के बराबर भी नहीं है, ऐसा मेरा विश्वास है। जयद्रथ के वध की इच्छा से मेरे युद्ध करते समय आप देखेंगे कि मैंने इन सब के अस्त्रों को अपने अस्त्र से काट गिराया है। (1-2)
- मैं द्रोणाचार्य के देखते-देखते अपने सैनिकों सहित विलाप करते हुए सिन्धुराज जयद्रथ का मस्तक पृथ्वी पर गिरा दूँगा। (3)
- मधुसूदन श्रीकृष्ण! यदि साध्य, रुद्र, वसु, अश्विनीकुमार, इन्द्रसहित मरुद्गण, विश्वेदेव, देवेश्वरगण, पितर, गन्धर्व, गरुड़, समुद्र, पर्वत, स्वर्ग, आकाश, यह पृथ्वी, दिशाएँ, दिक्पाल, गाँवों तथा जंगलों में निवास करने वाले प्राणी और सम्पूर्ण चराचर जीव भी सिन्धुराज जयद्रथ की रक्षा के लिये उद्यत हो जायँ तो भी मैं सत्य की शपथ खाकर और अपना धनुष छूकर कहता हूँ कि कल युद्ध में आप मेरे बाणों द्वारा जयद्रथ को मारा गया देखेंगे। (4-7)
- केशव! उस दुर्बुद्धि पापी जयद्रथ की रक्षा का बीड़ा उठाये हुए जो महाधनुर्धर आचार्य द्रोण हैं, पहले उन्हीं पर आक्रमण करूँगा। (8)
- दुर्योधन आचार्य पर ही इस युद्धरूपी द्यूत को आबद्ध[1] मानता है; अत: उसी की सेना के अग्रभाग का भेदन करके मैं सिन्धुराज के पास जाऊँगा। (9)
- जैसे इन्द्र अपने वज्र द्वारा पर्वतों के शिखरों को विदीर्ण कर देते हैं, उसी प्रकार कल युद्ध में मैं अच्छी तरह तेज किये हुए नाराचों द्वारा बड़े-बड़े धनुर्धरों को चीर डालूँगा; यह आप देखेंगे। (10)
- मेरे तीखे बाणों द्वारा विदीर्ण होकर गिरते और गिरे हुए मनुष्य, हाथी और घोड़ों के शरीरों से खून की धारा बह चलेगी। (11)
- गाण्डीव धनुष से छूटे हुए बाण मन और वायु के समान वेगशाली होते हैं। वे शत्रुओं के सहस्त्रों हाथी-घोड़े और मनुष्यों को शरीर और प्राणों से शून्य कर देंगे। (12)
- यम, कुबेर, वरुण, इन्द्र तथा रुद्र से मैंने जो भयंकर अस्त्र प्राप्त किये हैं, उन्हें कल के युद्ध में सब लोग देखेंगे। (13)
- जयद्रथ के समस्त रक्षकों द्वारा छोड़े हुए अस्त्रों को मैं युद्ध में ब्रह्मास्त्र द्वारा काट डालूँगा, यह आप देखेंगे। (14)
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