एकोनचत्वारिंश (39) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: एकोनचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर हलधारी बलराम औशनस तीर्थ में आये, जिसका दूसरा नाम कपालमोचन तीर्थ भी है। महाराज! पूर्वकाल में भगवान श्रीराम ने एक राक्षस को मारकर उसे दूर फेंक दिया था। उसका विशाल सिर महामुनि महोदर की जांघ में चपक गया था। वे महामुनि इस तीर्थ में स्नान करने पर उस कपाल से मुक्त हुए थे। महात्मा शुक्राचार्य ने वहीं पहले तप किया था, जिससे उनके हृदय में सम्पूर्ण नीति-विद्या स्फुरित हुई थी। वहीं रहकर उन्होंने दैत्यों अथवा दानवों के युद्ध के विषय में विचार किया था। राजन! उस श्रेष्ठ तीर्थ में पहुँच कर बलराम जी ने महात्मा ब्राह्मणों को विधिपूर्वक धन का दान दिया था। जनमेजय ने पूछा- ब्रह्मन! उस तीर्थ का नाम कपाल मोचन कैसे हुआ, जहाँ महामुनि महोदर को छुटकारा मिला था? अनकी जांघ में वह सिर कैसे और किस कारण से चिपक गया था? वैशम्पायन जी ने कहा- नृपश्रेष्ठ! पूर्वकाल की बात है, रघुकुल तिलक महात्मा श्रीरामचन्द्र जी ने दण्डकारण्य में रहते समय जब राक्षसों के संहार का विचार किया, तब तीखी धार वाले क्षुर से जनस्थान में उस दुरात्मा राक्षस का मस्तक काट दिया। वह कटा हुआ मस्तक उस महान वन में ऊपर को उछला और दैवयोग से वन में विचरते हुए महोदर मुनि की जांघ में जा लगा। नरेश्वर! उस समय उनकी हड्डी छेदकर वह भीतर तक घुस गया। उस मस्तक के चिपक जाने से वे महाबुद्धिमान ब्राह्मण किसी तीर्थ या देवालय में सुगमतापूर्वक आ-जा नहीं सकते थे। उस मस्तक से दुर्गन्धयुक्त पीब बहती रहती थी और महामुनि महोदर वेदना से पीड़ित हो गये थे। हमने सुना है कि मुनि ने किसी तरह भूमण्डल के सभी तीर्थों की यात्रा की। उन महातपस्वी महर्षि ने सम्पूर्ण सरिताओं और समुद्रों की यात्रा करके वहाँ रहने वाले पवित्रात्मा मुनियों से वह सब वृत्तान्त कह सुनाया। सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान करके भी वे उस कपाल से छुटकारा न पा सके। विप्रवर! उन्होंने मुनियों के मुख से यह महत्त्वपूर्ण बात सुनी कि ‘सरस्वती का श्रेष्ठ तीर्थ जो औशनस नाम से विख्यात है, सम्पूर्ण पापों को नष्ट करने वाला तथा परम उत्तम सिद्धि-क्षेत्र है’। तदनन्तर वे ब्रह्मर्षि वहाँ औशनस तीर्थ में गये और उसके जल से आचमन एवं स्नान किया। उसी समय वह कपाल उनके चरण (जांघ) को छोड़कर पानी के भीतर गिर पड़ा। प्रभो! उस मस्तक या कपाल से मुक्त होने पर महोदर मुनि को बड़ा सुख मिला। साथ ही वह मस्तक भी (जो उनकी जांघ से छूटकर गिरा था) पानी के भीतर अदृश्य हो गया। राजन! उस कपाल से मुक्त हो निष्पाप एवं पवित्र अन्तः करण वाले महोदर मुनि कृतकृत्य हो प्रसन्नतापूर्वक अपने आश्रम पर औट आये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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