महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 189 श्लोक 1-20

एकोननवत्‍यधिकशततम (189) अध्याय: द्रोण पर्व (द्रोणवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: एकोननवत्‍यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण, नकुल-सहदेव द्वारा उनकी रक्षा, दुर्योधन तथा सात्‍यकि का संवाद तथा युद्ध, कर्ण और भीमसेन का संग्राम और अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण


संजय कहते हैं - महाराज! इस प्रकार हाथी, घोडों और मनुष्‍यों का संहार करने वाले उस वर्तमान में दु:शासन धृष्टद्युम्न के साथ जूझने लगा। धृष्टद्युम्न पहले द्रोणाचार्य के साथ उलझे हुए थे, दु:शासन के बाणों से पीड़ित होकर उन्‍होंने आपके पुत्र के घोड़ों पर वेषपूर्वक बाणों की वर्षा आरम्‍भ कर दी। महाराज! एक ही क्षण में धृष्टद्युम्न के बाणों का ऐसा ढेर लग गया दु:शासन रथ ध्‍वजा और सारथि सहित अदृश्‍य हो गया। राजेन्‍द्र! महामना धृष्टद्युम्न के बाण समूहों से अत्‍यन्‍त पीड़ित हो दु:शासन उनके सामने ठहर न सका। इस प्रकार अपने बाणों द्वारा दु:शासन को सामने से भगा कर सहस्रों बाणों की वर्षा करते हुए धृष्टद्युम्न ने रण भूमि में पुन: द्रोणाचार्य पर ही आक्रमण किया। यह देख हृदिक पुत्र कृतवर्मा तथा दु:शासन के तीन भाई बीच में आ धमके। वे चारों मिलकर धृष्टद्युम्न को रोकने लगे।

प्रज्‍वलित अग्नि के समान तेजस्‍वी धृष्टद्युम्न को द्रोणाचार्य के सम्‍मुख जाते देख नरश्रेष्‍ठ नकुल और सहदेव उनकी रक्षा करते हुए पीछे-पीछे चले। उस समय अमर्ष से भरे हुए सभी धैर्यशाली महारथियों ने मृत्यु को सामने रखकर परस्‍पर युद्ध आरम्‍भ कर दिया। राजन! उन सबके हृदय शुद्ध और आचार-व्‍यवहार निर्मल थे। वे सभी स्‍वर्ग की प्राप्ति रूप लक्ष्‍य को अपने सामने रखते थे, अत: परस्‍पर विजय की अभिलाषा से वे आर्यजनोचित युद्ध करने लगे। जनेश्‍वर! उन सबके वंश शुद्ध और कर्म निष्‍कलंक थे, अत: वे बुद्धिमान योद्धा उत्‍तम गति पाने की इच्‍छा से धर्म युद्ध में तत्‍पर हो गये। वहाँ अधर्मपूर्ण और निन्‍दनीय युद्ध नहीं हो रहा था, उसमें कणीं[1], नालीक[2], विष लगाये हुए बाण और वस्तिक[3] नामक अस्त्र कर प्रयोग नहीं होता था। न सूची[4], कपिश[5], न गाय[6]की हड्डी[6] का बना हुआ, न हाथी की हड्डी का बना हुआ, न दो फलों का कांटोवाला, न दुर्गन्‍ध युक्‍त और न जिहाग (टेढ़ा जाने वाला) बाण ही काम में लाया जाता था। वे सब योद्धा न्‍याय युक्‍त युद्ध के द्वारा उत्‍त्‍ाम लोक और कीर्ति पाने की अभिलाषा रखकर सरल और शुद्ध शस्त्रों को ही धारण करते थे। आपके चार योद्धाओं का तीन पाण्‍डव वीरों के साथ घमासान युद्ध चल रहा था, वह सब प्रकार के दोषों से रहित था। राजन! धृष्टद्युम्न शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने वाले थे। वे नकुल और सहदेव के द्वारा कौरव पक्ष के उन वीर महारथियों को रोका गया देख स्‍वयं द्रोणाचार्य की ओर बढ़ गये। वहाँ रोके गये वे चारों वीर उन दोनों पुरुष सिंह पाण्‍डवों के साथ इस प्रकार भिड़ गये मानों चौआई हवा दो पर्वतों से टकरा रही हो। रथियों में श्रेष्‍ठ नकुल और सहदेव दो-दो कौरव रथियों के साथ जूझने लगे। इतने में ही धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य के सामने जा पहुँचे।

महाराज! रणदुर्मद धृष्टद्युम्न को द्रोणाचार्य की ओर जाते और अपने दल के उन चारों वीरों वाले बाणों की वर्षा करता हुआ उनके बीच में आ धमका। यह देख सात्‍यकि बड़ी शीघ्रता के साथ पुन: दुर्योधन के सम्‍मुख आ गये। वे दोनों मनुष्‍यों में सिंह के समान पराक्रमी थे। कुरुवंशी दुर्योधन और मधुवंशी सात्‍यकि एक दूसरे को समीप पाकर निर्भय हो हंसते हुए युद्ध करने लगे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जिधर बाण के फल का रूख हो, उससे विपरीत रूखवाले दो काँटों से युक्त बाण को कर्णीं कहते हैं। शरीर में धँस जाने पर यदि उसे निकाला जाय तो वह आँतों को भी अपने साथ खींच लेता है, इसलिये निंध है।
  2. 'नालीक' नामक बाण अत्यंत छोटा होता है, वह शरीर में पूरा का पूरा डूब जाता है, अत: उसे निकालना कठिन हो जाता है।
  3. बाण के डंडे और फलके संधि-स्थान में, जो अत्यंत पतला होता है, उस बाण को 'वस्तिक' कहते हैं। उसे शरीर से निकालने पर वह बीच से टूट जाता है, फल भीतर रह जाता है और केवल डंडा बाहर निकल पाता है।
  4. 'सूची' नामक बाण की कर्णीं के ही समान होता है। अंतर इतना है कि इसमें बहुत-से कण्टक होते हैं।
  5. कुछ लोग 'कपिश' को भी सूची के समान मानते हैं। किन्हीं के मत में 'कपिश' का फल बंदर की हड्डी का बना होता है। अधिकांश लोगों का मत है कि 'कपिश' काले लोहे का बना होता है, उसका हल्का आघात लगने पर वह शरीर में गहाराई तक घुस जाता है। मेदिनी कोष के अनुसार कपिश का अर्थ काला है भी।
  6. 6.0 6.1 जिस का फल गाय की हड्डी का बना हो, वह ;गवास्थिज' और जिसका हाथी की हड्डी का बना हो, वह 'गजास्थिज' कहलाता है। इसका असर भी विषलिप्त बाण के समान ही होता है।

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