महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 79 श्लोक 1-17

एकोनाशीतितम (79) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का कौरव सेना को विनाश करके खून की नदी बहा देना और अपना रथ कर्ण के पास ले चलने के लिये भगवान् श्रीकृष्ण से कहना तथा श्रीकृष्ण और अर्जुन को आते देख शल्य और कर्ण की बातचीत तथा अर्जुन द्वारा कौरव सेना का विध्वंस


संजय कहते है- महाराज! उस महासागर मैं शत्रुवीरो का संहार करने वाले अर्जुन ने क्रोध मैं भरे हुए सूतपुत्र को देखकर कौरवों की चतुरंगिणी सेना का विनाश करके वहाँ रक्त की नदी बहा दी। जिसमें जल के स्थान मैं इस पृथ्वी पर रक्त ही बह रहा था; मांस-मज्जा और हड्डियां कीचड़ का काम दे रही थी। मनुष्यों के कटे हुए मस्तक पत्थरों के टुकडों के समान जान पडते थे, हाथी और घोड़ों की लाशें कगार बनी हुई थी, शूरवीरों की हड्डियों के ढेर वहाँ वहाँ हर सब और बिखरे हुए थे, कौए और गीध वहाँ अपनी बोली बोल रहे थे, छत्र ही हंस और छोटी नौका का काम कर देते थे, वीरों के शरीररूपी वृक्ष को वह नदी बहाये लिये जाती थी, उसमें हार ही कमलवन और सफेद पगड़ी की फेन थी, धनुष और बाण वहाँ मछली के समान जान पड़ते थे, मनुष्यों की छोटी-छोटी खोपड़ियां वहाँ बिखरी पड़ी थी, ढाल और कवच ही उसमें भंवर के समान प्रतीत होते थे, रथरूपी छोटी नौका से व्याप्त वह नदी विजयाभिलाशी वीरों के लिये सुगमतापूर्वक पार होने योग्य और कायरों के लिये अत्यन्त दुस्तर थी। उस नदी को बहाकर पुरुषप्रवर अर्जुन ने वसुदेवनन्दन भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा।

अर्जुन बोले- श्रीकृष्ण! रणभूमि मैं वह सूतपुत्र कर्ण की ध्वजा दिखायी देती है। ये भीमसेन आदि महारथी कर्ण से युद्ध करते हैं। जर्नादन! ये पांचाल योद्धा कर्ण से डरकर भाग रहे थे, यह राजा दुर्योधन है, जिसके ऊपर श्वेत छत्र तना हुआ है और कर्ण ने जिनके पांव उखाड़ दिये हैं उन पांचालों को खदेड़ता हुआ यह बड़ी शोभा पा रहा है।

कृपाचार्य, कृतवर्मा और महारथी अश्वत्थामा- ये सूतपुत्र से सुरक्षित जो राजा दुर्योधन की रक्षा करते हैं। यदि हम इन तीनों को नहीं मारते हैं तो ये सोमकों का संहार कर डालेंगे। श्रीकृष्ण! घोड़ों की बागडोर संचालन करने की कला मैं कुशल ये राजा शल्य रथ के निचले भाग मैं बैठकर सूतपुत्र का रथ हांकते बड़ी शोभा पाते हैं। जनार्दन! यहाँ मेरा ऐसा विचार हो रहा है कि आप मेरे इस विशाल रथ को वहीं हांक ले चलें (जहाँ कर्ण खड़ा है)। मैं समरांगण मैं कर्ण का वध किये बिना किसी प्रकार पीछे नहीं लौटूंगा। अन्यथा राधापुत्र हमारे देखते-देखते पाण्डव तथा सृंजय महारथियों को समरभूमि मैं निःशेष कर देगा-किसी को जीवित नहीं छोड़ेगा।

तदनन्तर भगवान श्रीकृष्ण रथ के द्वारा शीघ्र ही सव्यसाची अर्जुन के साथ कर्ण का द्वैरथ युद्ध कराने के लिये आपकी सेना मैं महाधनुर्धर कर्ण की और चले। अर्जुन की अनुमति से महाबाहु श्रीकृष्ण रथ के द्वारा ही पाण्डव-सेनाओं को सब ओर से आश्वासन देते हुए आगे बढे़। मान्यवर नरेश! संग्राम मैं पाण्डुपुत्र अर्जुन के रथ का वह घर्घर घोष इन्द्र के वज्र की गड़गड़ाहट तथा मेघसमूहों की गर्जना के समान प्रतीत होता था। सत्यपराक्रमी पाण्डव अर्जुन अप्रमेय आत्मबल से सम्पन्न थे। वे महान रथघोष द्वारा आपकी सेना को परास्त करते हुए आगे बढ़े।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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