महाभारत विराट पर्व अध्याय 54 श्लोक 1-10

चतु:पंचाशत्तम (54) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: चतु:पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का कर्ण पर आक्रमण, विकर्ण की पराजय, शत्रंतप और संग्रामजित् का वध, कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण का पलायन

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! धनुषधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन ने शत्रुओं को बड़े वेग से दबाकर उन गौओं को जीत लिया और वे युद्ध की इच्छा से फिर दुर्योधन की ओर चले। जब गौएँ तीव्र गति से मत्स्य देशर की राजधानी की ओर भाग गयीं और अर्जुन अपने कार्य में सफल होकर दुर्योधन की ओर बढ़ चले, तब यह सब जानकर कौरव वीर सहसा वहाँ आ पहुँचे। उनकी अनेक सेनाएँ थीं और उन सबकी अच्छभ् तरह व्यूह रचना की गयी थी। उन सेनाओं में बहुत सी ध्वजा पताकाएँ फहरा रही थीं। शत्रुओं का नाश करने वाले अर्जुन ने उन सबको देखकर विराट पुत्र उत्तर को सम्बोधित करके कहा -राजकुमार! सुनहरी रस्सियों से जुते हुए मेरे इन सफेद घोड़ों को तुम शीघ्र ही इस मार्ग से ले चलो और सम्पूर्ण वेग से ऐसा प्रयत्न करो कि मैं कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन की सेना के पास पहुँच जाऊँ। यह देखो, जैसे हाथी हाथी के साथ भिड़ना चाहता हो, उसी प्रकार यह दुरात्मा सूत पुत्र कर्ण मेरे साथ युद्ध करना चाहता है। पहले इसी के पास मुझे ले चलो। यह दुर्योधन का सहारा पाकर बड़ा घमंडी हो गया है।

अर्जुन के विशाल घोड़े वायु के समान वेगशाली थे। उनकी जीन के नीचे लगे हुए कपड़े के पिछले दोनों छोर सुनहरे थे। विराट पुत्र उत्तर ने तेजी से हाँककर उन घोड़ों के द्वारा कौरव रथियों की सेना को कुचलते हुए पाण्डु नन्दन अर्जुन को सेना के मध्य भाग में पहुँचा दिया। इतने में ही चित्रसेनख् संग्रामजित्, शत्रुसह तथा जय आदि महारथी विपाठ नामक बाणों की वर्षा करते हुए कर्ण की रक्षा करने के उद्देश्य से वहाँ आक्रमण करने वाले अर्जुन के सामने आ डटे। तब कुरुश्रेष्ठ वीरवर अर्जुन क्रोध से युक्त हो आग बबूले हो गये। धनुष मानो उस आग की ज्वाला थी और बाणों का वेग ही आँच बन गया था। जैसे आग वन को जला डालती है, उसी प्रकार वे उन कुरुश्रेष्ठ महारथियों के रथ समूहों को भस्म करने लगे। इस प्रकार घोर युद्ध छिड़ जाने पर कुरुकुल के श्रेष्ठ वीर विकर्ण ने रथ परउ सवार हो विपाठ नामक बाणों की भयंकर वर्षा करते हुए भीम के छोटे भाई अतिरथी वीर अर्जुन पर आक्रमण किया। तब अर्जुन ने अपने बाणों से जाम्बूनद नामक उत्तम सुवर्ण मढ़े हुए सुदृढ़ प्रत्यन्चा वाले विकर्ण के धनुष को काटकर ध्वज के भी टुकड़े टुकड़े करके गिरा दिया। रथ की ध्वजा कट जाने पर विकर्ध बड़े वेग से भाग निकला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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