महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 99 श्लोक 1-22

एकोनशततम (99) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनशततम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद


नवें दिन के युद्ध के लिये उभयपक्ष की सेनाओं की व्यूहरचना और उनके घमासान युद्ध का आरम्भ तथा विनाशसूचक उत्पातों का वर्णन


संजय कहते हैं- महाराज! तदनन्तर शान्तनुनन्दन भीष्म सेना के साथ शिविर से बाहर निकले। उन्होंने अपनी सेना को सर्वतोभद्र नामक महान् व्यूह के रूप में संगठित किया। भारत! कृपाचार्य, कृतवर्मा, महारथी शैव्य, शकुनि, सिन्धुराज जयद्रथ तथा काम्बोजराज सुदक्षिण - ये सब नरेश भीष्म तथा आपके पुत्रों के साथ सम्पूर्ण सेना के आगे तथा व्यूह के प्रमुख भाग में खड़े हुए थे। आर्य! द्रोणाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य तथा भगदत्त - ये कवच बाँधकर व्यूह के दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर खड़े थे। अश्वत्थामा, सोमदत्त तथा अवन्ती के दोनों राजकुमार महारथी विन्द और अनुविन्द- ये सब विशाल सेना के साथ व्यूह के वाम पक्ष का संरक्षण कर रहे थे। महाराज! भरतवंशी नरेश! त्रिगर्तदेशीय सैनिकों के द्वारा सब ओर से घिरा हुआ दुर्योधन पाण्डवों का सामना करने के लिये व्यूह के मध्यभाग में खड़ा हुआ। रथियों में श्रेष्ठ अलम्बुष और महारथी श्रुतायु- ये दोनों कवच धारण करके सम्पूर्ण सेनाओं तथा व्यूह के पृष्ठभाग में खड़े थे। भारत! इस प्रकार व्यूह रचना करके उस समय आपके पुत्र कवच आदि से सुसज्जित हो प्रजवलित अग्नियों के समान दृष्टिगोचर हो रहे थे।

उधर राजा युधिष्ठिर, पाण्डुकुमार भीमसेन, माद्रां के दोनों पुत्र नकुल और सहदेव सब सेनाओं तथा व्यूह के अग्र भाग में कवच बाँधकर खड़े हुए। धृष्टद्युम्न, राजा विराट और महारथी सात्यकि- ये शत्रु सेना का विनाश करने वाले वीर भी विशाल सेना के साथ व्यूह में यथास्थान स्थित थे। महाराज! शिखण्डी, अर्जुन, राक्षस घटोत्कच, महाबाहु चेकितान तथा पराक्रमी कुन्तिभोज - ये विशाल सेना से घिरे हुए वीर युद्धभूमि में यथायोग्य स्थान पर खड़े थे। महाधनुर्धर अभिमन्यु, महाबली द्रुपद, विशाल धनुष धारण करने वाले युयुधान, पराक्रमी युधामन्यु और पाँचों भाई केकय राजकुमार - ये कवच धारण करके युद्ध के लिये तैयार खड़े थे। इस प्रकार शूरवीर पाण्डव भी समरांगण में अत्यन्त दुर्जय महाव्यूह की रचना करके कवच बाँध युद्ध के लिये तैयार थे।

संजय कहते हैं- राजन्! आपकी सेना के नरेश अपनी-अपनी सेनाओं के साथ युद्ध के लिए उद्यत हो भीष्म को आगे करके पाण्डवों पर चढ़ आये। नरेश्वर! उसी प्रकार भीमसेन आदि पाण्डवों ने भी आपकी सेना पर आक्रमण किया। संग्राम में भीष्म के साथ युद्ध की इच्छा रखने वाले विजयाभिलाषी पाण्डव सिंहनाद, किल-किल शब्द, शंखध्वनि, क्रकच, गोश्रृंग, भेरी, मृदंग, पणव तथा पुष्कर आदि बाजों को बजाते तथा भैरव-गर्जना करते हुए कौरव सेना पर चढ़ आये। भेरी, मृदंग शंख और दुन्दुभियों की ध्वनि एवं उच्च स्वर से सिंहनाद करते तथा अनेक प्रकार से अपनी शेखी बघारते हुए हम लोगों ने भी बड़ी उतावली के साथ अत्यन्त क्रुद्ध हो सहसा उन पर आक्रमण किया और उनकी गर्जना का उत्तर हम भी अपनी गर्जना द्वारा ही देने लगे। उस समय उभय पक्ष के सैनिकों में महान् युद्ध होने लगा। दोनों पक्ष के योद्धा एक दूसरे पर धावा करते हुए अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करने लगे। उस समय जो महान् कोलाहल हुआ, उससे सारी पृथ्वी काँपने लगी। पक्षी अत्यन्त घोर शब्द करते हुए आकाश में चक्कर काटने लगे। सूर्य यद्यपि तेजस्वी रूप में उदित हुआ था, तथापि उस समय निस्तेज हो गया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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