चतु:षष्टितम (64) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: चतु:षष्टितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
तब अर्जुन ने उस महामनस्वी वीर के समस्त घोड़ों को मारकर समरभूमि में खून की नदी-सी बहा दी। वह रक्तमयी भयंकर सरिता परलोक वाहिनी थी और सब लोगों को अपने प्रवाह में बहाये लिये जाती थी। वहाँ खड़े हुए सब लोगों ने देखा कि अश्वत्थामा के सारे रथी अर्जुन के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा युद्ध भूमि में मारे गये। स्वयं अश्वत्थामा ने भी उनकी वह अवस्था देखी। उस समय उसने भी महाभयंकर परलोक वाहिनी नदी बहा दी। अश्वत्थामा और अर्जुन के उस भयंकर एवं घमासान युद्ध में सब योद्धा मर्यादारहित होकर युद्ध करते हुए आगे पीछे सब ओर भागने लगे। रथों के घोड़े और सारथि मार दिये गये। घोड़ों के सवार नष्ट हो गये। गजारोही मार डाले गये और हाथी बचे रहे एवं कहीं हाथी ही मार डाले गये तथा महावत बचे रहे। राजन! इस प्रकार समरांगण में अर्जुन ने घोर जनसंहार मचा दिया। उनके धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा मारे जाकर बहुत से रथी धराशायी हो गये। घोड़ों के बन्धन खुल गये और वे चारों ओर दौड़ लगाने लगे। युद्ध में शोभा पाने वाले अर्जुन का वह पराक्रम देखकर पराक्रमी द्रोणकुमार अश्वत्थामा तुरंत उनके पास आ गया और अपने सुवर्णभूषित विशाल धनुष को हिलाते हुए उसने विजयी वीरों में श्रेष्ठ अर्जुन को पैने बाणों द्वारा सब ओर से ढक दिया। महाराज! तदनन्तर द्रोणकुमार ने धनुष खींचकर छोड़े हुए पंखयुक्त बाण से कुन्तीकुमार अर्जुन की छाती पर पुन: बड़े जोर से निर्दयतापूर्वक प्रहार किया। भारत! रणभूमि में द्रोणपुत्र के द्वारा अत्यन्त घायल किये गये उदार बुद्धि गाण्डीवधारी अर्जुन ने समरांगण में बलपूर्वक बाणों की वर्षा करके अश्वत्थामा को ढक दिया और उसके धनुष को भी काट डाला। धनुष कट जाने पर द्रोणपुत्र ने युद्धस्थल में एक ऐसा परिघ हाथ में लिया, जिसका स्पर्श वज्र के समान कठोर था। उसने उस परिघ को तत्काल ही किरीटधारी अर्जुन पर दे मारा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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