महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 174 श्लोक 1-10

चतु:सप्तत्यधिकशततम (174) अध्‍याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्‍या पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: चतु:सप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

अम्बा का शाल्वराज के प्रति अपना अनुराग प्रकट करके उनके पास जाने के लिये भीष्‍म से आज्ञा मांगना

  • भीष्‍मजी कहते हैं- भरतश्रेष्‍ठ! तदनन्तर मैंने वीर-जननी दाशराज की पुत्री माता सत्यवती के पास जाकर उनके चरणों में प्रणाम करके इस प्रकार कहा- (1)
  • ‘मां! ये काशिराज की कन्याएं हैं। पराक्रम ही इनका शुल्क था। इसलिये मैं समस्त राजाओं को जीतकर भाई विचित्रवीर्य के लिये इन्हें हर लाया हूँ।' (2)
  • नरेश्‍वर! यह सुनकर माता सत्यवती के नेत्रों में हर्ष के आंसू छलक आये। उन्होंने मेरा मस्तक सूंघकर प्रसन्नतापूर्वक कहा- ‘बेटा! बड़े सौभाग्य की बात है कि तुम विजयी हुए।' (3)
  • सत्यवती की अनुमति से जब वि‍वाह का कार्य उपस्थित हुआ, तब काशिराज की ज्येष्‍ठ पुत्री अम्बा ने कुछ लज्जित होकर मुझसे कहा- (4)
  • ‘भीष्‍म! तुम धर्म के ज्ञाता और सम्पूर्ण शास्त्रों के ज्ञान में निपुण हो। मेरी बात सुनकर तुम्हें मेरे साथ धर्मपूर्ण बर्ताव करना चाहिये। (5)
  • ‘मैंने अपने मन से पहले शाल्वराज को अपना पति चुन लिया है और उन्होंने भी एकान्त में मेरा वरण कर लिया है। यह पहले की बात है, जो मेरे पिता को भी ज्ञात नहीं हैं। (6)
  • ‘भीष्‍म! मैं दूसरे की कामना करने वाली राजकन्या हूँ। तुम विशेषत: कुरुवंशी होकर राजधर्म का उल्लघंन करके मुझे अपने घर में कैसे रखोगे? (7)
  • महाबाहु भरतश्रेष्‍ठ! अपनी बुद्धि और मन से इस विषय में निश्चित विचार करके तुम्हें जो उचित प्रतीत हो, वही करना चाहिये। (8)
  • ‘प्रजानाथ! शाल्वराज निश्‍चय ही मेरी प्रतीक्षा करते होंगे; अत: कुरुश्रेष्‍ठ! तुम्हें मुझे उनकी सेवा में जाने की आज्ञा देनी चाहिये। (9)
  • ‘धर्मात्माओं में श्रेष्‍ठ! महाबाहु वीर! मुझ पर कृपा करो। मैंने सुना है कि इस पृथ्‍वी पर तुम सत्यव्रती महात्मा हो।' (10)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत अम्बोपाख्‍यानपर्व में अम्बावाक्यविषयक एक सौ चौहत्तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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