एकोनचत्वारिंश (39) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: एकोनचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर बोले- पृथ्वीनाथ! संसार के ये मनुष्य विधाता द्वारा उत्पन्न किये गये महान मोह से आविष्ट हो सदा ही स्त्रियों में आसक्त होते हैं। इसी तरह स्त्रियाँ भी पुरुषों में ही आसक्त होती हैं? यह बात प्रत्यक्ष देखी जाती है और लोग इसके साक्षी हैं। इस बात को लेकर मेरे मन में भारी संदेह खड़ा हो गया है। कुरुनंदन! पुरुष क्यों इन स्त्रियों का संग करते हैं? अथवा स्त्रियाँ भी किस निमित्त से पुरुषों में अनुरक्त एवं विरक्त होती हैं। पुरुषसिंह! पुरुष यौवन से उन्मत्त स्त्रियों की रक्षा कैसे कर सकता है? यह विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें। ये रमण करती हुई भी यहाँ पुरुषों को ठगती रहती हैं। इनके हाथ में आया हुआ कोई भी पुरुष इनसे बचकर नहीं जा सकता। जैसे गौएँ नयी-नयी घास चरती हैं, उसी प्रकार ये नारियाँ नये-नये पुरुषों को अपनाती हैं। शम्बरासुर की जो माया है तथा नमुचि, बलि और कुम्भीनसी की जो मायाएँ हैं, उन सबको ये युवतियाँ जानती हैं। पुरुष को हँसते देख ये स्त्रियाँ जोर-जोर से हँसती हैं। उसे रोते देख स्वंय भी फूट-फूटकर रोने लगती हैं और अवसर आने पर अप्रिय पुरुष को प्रिय वचनों द्वारा अपना लेती हैं। जिस नीतिशास्त्र को शुक्राचार्य जानते हैं, जिसे बृहस्पति जानते हैं, वह भी स्त्री की बुद्धि से बढ़कर नहीं है। ऐसी स्त्रियों की रक्षा पुरुष कैसे कर सकते हैं। वीर! जिनके झूठ को भी सच और सच को भी झूठ बताया गया है, ऐसी स्त्रियों की रक्षा पुरुष यहाँ कैसे कर सकते हैं? शत्रुघाती नरेश! मुझे तो ऐसा लगता है कि स्त्रियों की बुद्धि में जो अर्थ भरा है, उसी का निष्कर्ष (सांराश) लेकर बृहस्पति आदि सत्पुरुषों ने नीतिशास्त्रों की रचना की है। नरेश्वर! पुरुषों द्वारा सम्मानित होने पर भी ये रमणियाँ उनका मन विकृत कर देती हैं और उनके द्वारा तिरस्कृत होने पर भी उनके मन में विकार उत्पन्न कर देती हैं। महाबाहो! हमने सुन रखा है कि ये स्त्रीरूपिणी प्रजाएँ बड़ी धार्मिक हेाती हैं (जैसा कि सावित्री आदि के जीवन से प्रत्यक्ष हो चुका है); फिर भी ये स्त्रियाँ सम्मानित हों या असम्मानित, सदा ही पुरुषों के मन में विकार उत्पन्न करती रहती हैं। उनकी रक्षा कौन कर सकता है? यही मेरे मन में महान संशय है। महाभाग! कुरुकुलवर्धन! कुरुश्रेष्ठ! यदि किसी प्रकार कभी भी उनकी रक्षा की जा सके तो वह बताइये। यदि किसी ने पहले कभी किसी स्त्री की रक्षा की हो तो वह कथा भी मुझे विस्तार के साथ बताइये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अन्तगर्त दानधर्म पर्व में स्त्रियों के स्वभाव वर्णन विषयक उनतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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