महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-21

पंचम (5) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद
कर्ण का दुर्योधन के समक्ष सेनापति पद के लिये द्रोणाचार्य का नाम प्रस्‍तावित करना
  • संजय कहते हैं– राजन! पुरुषसिंह कर्ण को रथ पर बैठा देख दुर्योधन ने प्रसन्‍न होकर इस प्रकार कहा। (1)
  • कर्ण! तुम्‍हारे द्वारा इस सेना का संरक्षण हो रहा है, इससे मैं इसे सनाथ हुई-सी मानता हूँ। अब यहाँ हमारे लिये क्‍या करना उपयोगी और हितकर है, इसका निश्‍चय करो'। (2)
  • कर्ण ने कहा– पुरुषसिंह नरेश्वर! तुम तो बड़े बुद्धिमान हो। स्‍वयं ही अपना विचार हमें बताओ; क्‍योंकि धन का स्‍वामी उसके सम्‍बन्‍ध में आवश्‍यक कर्तव्‍य का जैसा विचार करता है, वैसा दूसरा कोई नहीं कर सकता। (3)
  • अत: नरेश्वर! हम सब लोग तुम्‍हारी ही बात सुनना चाहते हैं। मेरा विश्वास है कि तुम कोई ऐसी बात नहीं कहोगे, जो न्‍यायसंगत न हो। (4)
  • दुर्योधन ने कहा- कर्ण! पहले आयु, बल-पराक्रम और विद्या में सबसे बढ़े-चढ़े पितामह भीष्‍म हमारे सेनापति थे। वे अत्‍यन्‍त यशस्‍वी महात्‍मा पितामह समस्‍त योद्धाओं को साथ ले उत्तम युद्ध प्रणाली द्वारा मेरे शत्रुओं का संहार करते हुए दस दिनों तक हमारा पालन करते आये हैं। (5)
  • वे तो अत्‍यन्‍त दुष्‍कर कर्म करके अब स्‍वर्ग लोक के पथ पर आरूढ़ हो गये हैं। ऐसी दशा में उनके बाद तुम किसे सेनापति बनाये जाने योग्‍य मानते हो? (6)
  • समरांगण के श्रेष्‍ठ वीर! सेनापतिे के बिना कोई सेना दो घड़ी भी संग्राम मे टिक नहीं सकती है। ठीक उसी तरह, जैसे मल्‍लाह के बिना नाव जल में स्थिर नहीं रह सकती है। (8)
  • जैसे बिना नाविक की नाव जहाँ-कहीं भी जल में बह जाती है और बिना सारथि का रथ चाहे जहाँ भटक जाता है, उसी प्रकार सेनापति के बिना सेना भी जहाँ चाहे भाग सकती है। (9)
  • जैसे कोई मार्गदर्शक न होने पर यात्रियों का सारा दल भारी संकट मे पड़ जाता है, उसी प्रकार सेनानायक के बिना सेना को सब प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। (10)
  • अत: तुम मेरे पक्ष के सब महामनस्‍वी वीरों पर दृष्टि डाल कर यह देखो कि भीष्‍मजी के बाद अब कौन उपयुक्‍त सेनापति हो सकता है। (11)
  • इस युद्धस्‍थल में तुम जिसे सेनापति पद के योग्‍य बताओगे, नि:संदेह हम सब लोग मिलकर उसी को सेनानायक बनायेंगे। (12)
  • कर्ण ने कहा– राजन! ये सभी महामनस्‍वी पुरुषप्रवर नरेश सेनापति होने के योग्‍य हैं। इस विषय में कोई अन्‍यथा विचार करने की आवश्‍यकता नहीं है। (13)
  • जो राजा यहाँ मौजूद हैं, वे सभी अपने कुल, शरीर, ज्ञान, बल, पराक्रम और बुद्धि की दृष्टि से सेनापति पद के योग्‍य हैं। ये सब के सब वेदज्ञ, बुद्धिमान और युद्ध से कभी पीछे न हटने वाले हैं। (14)
  • परंतु सब-के-सब एक ही समय सेनापति नहीं बनाये जा सकते, इसलिये जिस एक में सभी विशिष्‍ठ गुण हों, उसी को अपनी सेना का प्रधान बनाना चाहिये। (15)
  • किंतु ये सभी नरेश परस्‍पर एक दूसरे से स्‍पर्धा रखने वाले हैं। यदि इनमें से किसी एक को सेनापति बना लोगे तो शेष सब लोग मन-ही-मन अप्रसन्‍न हो तुम्‍हारे हित की भावना से युद्ध नहीं करेंगे, यह बात बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है। (16)
  • इसलिये जो इन समस्‍त योद्धाओं के आचार्य, वयोवृद्ध गुरु तथा शस्‍त्रधारियों में श्रेष्‍ठ हैं, वे आचार्य द्रोण ही इस समय सेनापति बनाये जाने के योग्‍य हैं। (17)
  • सम्‍पूर्ण शस्‍त्रधारियों में श्रेष्‍ठ, दुर्जय वीर द्रोणाचार्य के रहते हुए इन शुक्राचार्य और बृहस्पति के समान महानुभाव को छोड़कर दूसरा कौन सेनापति हो सकता है। (18)
  • भारत! समस्‍त राजाओं में तुम्‍हारा कोई भी ऐसा योद्धा नहीं है, जो समरभूमि में आगे जाने वाले द्रोणाचार्य के पीछे-पीछे न जाय। (19)
  • राजन! तुम्‍हारे ये गुरुदेव समस्‍त सेनापतियों, शस्‍त्रधारियों और बुद्धिमानों मे श्रेष्‍ठ हैं। (20)
  • अत: दुर्योधन! जैसे असुरों पर विजय की इच्‍छा रखने वाले देवताओं ने रणक्षेत्र में कार्तिकेय को अपना सेनापति बनाया था, इसी प्रकार तुम भी आचार्य द्रोण को शीघ्र सेनापति बनाओ। (21)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत द्रोणाभिषेकपर्व में कर्णवाक्‍यविषयक पाँचवा अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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