महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 79 श्लोक 1-17

एकोनाशीतितम (79) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद


भीमसेन के द्वारा दुर्योधन की पराजय, अभिमन्यु और द्रौपदीपुत्रों का धृतराष्ट्रपुत्रों के साथ युद्ध तथा छठे दिन के युद्ध की समाप्ति


संजय कहते हैं- महाराज! तदनन्तर जब सूर्यदेव पर संध्या की लाली छाने लगी, उस समय संग्राम के लिये उत्साह रखने वाले राजा दुर्योधन ने भीमसेन को मार डालने की इच्छा से उन पर धावा किया। अपने पक्के बैरी नरवीर दुर्योधन को आते देख भीमसेन का क्रोध बहुत बढ़ गया और वे उससे यह वचन बोले- 'दुर्योधन! मैं बहुत वर्षों से जिसकी अभिलाषा और प्रतीक्षा कर रहा था, वही यह अवसर आज प्राप्त हुआ है। यदि तू युद्ध छोड़कर भाग नहीं जायेगा तो आज तुझे अवश्य मार डालूँगा। माता कुन्ती को जो क्लेश उठाना पड़ा है, हमने वनवास का जो कष्ट भोगा है और सभा में द्रौपदी को जो अपमान का दुःख सहन करना पड़ा है, उन सबका बदला आज मैं तेरे मारे जाने पर चुका लूँगा। गान्धारीपुत्र! पूर्वकाल में डाह रखकर तू जो हम पाण्डवों का तिरस्कार करता आया है, उसी पाप के फलस्वरूप यह संकट तेरे ऊपर आया है। तू आँख खोलकर देख ले। पहले कर्ण और शकुनि के बहकावे में आकर पाण्डवों को कुछ भी न गिनते हुए जो तूने इच्छानुसार मनमाना बर्ताव किया है, भगवान श्रीकृष्ण संधि के लिये प्रार्थना करने आये थे, परंतु तूने मोहवश जो उनका भी तिरस्कार किया और बड़े हर्ष में भरकर उलूक के द्वारा जो तूने यह संदेश दिया था कि तुम मुझे और मेरे भाइयों को मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो, उसके अनुसार तुझे भाइयों तथा सगे-सम्बन्धियों सहित अवश्य मार डालूँगा। पहले तूने जो-जो पाप किये हैं, उन सबका बदला चुकाकर बराबर कर दूँगा।'

ऐसा कहकर भीमसेन ने अपने भयंकर धनुष को बारंबार घुमाकर उसे बलपूर्वक खींचा और वज्र के समान तेजस्वी भयंकर बाणों को उसके ऊपर रखा। वे सीधे जाने वाले बाण वज्र तथा प्रज्वलित आग की लपटों के समान जान पड़ते थे। उनकी संख्या छब्बीस थी। कुपित हुए भीमसेन ने उन सबको शीघ्रतापूर्वक दुर्योधन पर छोड़ दिया। तत्पश्चात् भीमसेन ने दो बाणों से दुर्योधन का धनुष काट दिया, दो से उसके सारथि को पीड़ित किया और चार बाणों से उसके वेगशाली घोड़ों को यमलोक भेज दिया। नरश्रेष्ठ! फिर शत्रुमर्दन भीम ने धनुष को अच्छी तरह खींचकर छोडे़ हुए दो बाणों द्वारा समरभूमि में राजा दुर्योधन के छत्र को काट दिया।

इसके बाद अपनी प्रभा से प्रकाशित होने वाले उसके उत्तम ध्वज को छः बाणों से खण्डित कर दिया। आपके पुत्र के देखते-देखते उस ध्वज को काटकर भीमसेन उच्च स्वर से सिंहनाद करने लगे। दुर्योधन के नाना रत्नविभूषित रथ से वह शोभाशाली ध्वज सहसा कटकर पृथ्वी पर गिर पड़ा, मानो मेघों की घटा से भूमि पर बिजली गिरी हो। कुरुराज दुर्योधन के उस सूर्य के समान प्रज्वलित नाग चिह्नित मणिमय सुन्दर ध्वज को कटकर गिरते समय समस्त राजाओं ने देखा। इसके बाद महारथी भीम ने मुसकराते हुए से रणभूमि में वीरवर दुर्योधन को दस बाणों से उसी तरह घायल किया, जैसे महावत अंकुशों से महान् गजराज को पीड़ा देता है। तदनन्तर रथियों में श्रेष्ठ सिन्धुराज महारथी जयद्रथ ने कुछ सत्पुरुषों के साथ आकर दुर्योधन के पृष्ठभाग की रक्षा का कार्य सँभाला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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