महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 195 श्लोक 1-19

पंचनवत्यधिकशततम (195) अध्‍याय: उद्योग पर्व (अम्बोपाख्‍यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: पंचनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

कौरव सेना का रण के लिये प्रस्थान

वैशम्पायनजी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर निर्मल प्रभातकाल में धृतराष्‍ट्र पुत्र दुर्योधन से प्रेरित होकर सब राजा पाण्‍डवों से युद्ध करने के लिये चले; चलने के पहले उन सबने स्नान करके शुद्ध होकर श्‍वेत वस्त्र धारण किये, पुष्‍पों की मालाएं पहनीं, ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराया, अग्नि में आहुतियां दीं, फिर ध्‍वजा फहराते हुए हाथों में अस्त्र-शस्त्र लेकर रणभूमि की ओर प्रस्थित हुए। वे सभी वेदवेत्ता, शूरवीर तथा उत्तम विधि से व्रत का पालन करने वाले थे। सभी कवचधारी तथा युद्ध के चिह्नों से सुशोभित थे। वे महाबली वीर युद्ध में पराक्रम दिखाकर उत्तम लोकों पर विजय पाना चाहते थे। उन सबका चित्त एकाग्र था और वे सभी एक दूसरे पर विश्‍वास करते थे। अवन्ती देश के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, बाह्लीक देशीय सेनिकों के साथ केकयराजकुमार- ये सब द्रोणाचार्य को आगे करके चले। अश्वत्थामा, भीष्‍म, सिन्धुराज जयद्रथ, दाक्षिणात्य नरेश, पाश्वात्त्य भूपाल और पर्वतीय भूपाल, गान्धारराज शकुनि तथा पूर्व और उत्तर दिशा के नरेश, शक, किरात, यवन, शिवि और वसाति भूपालगण- ये सभी महारथी लोग अपनी-अपनी सेनाओं के साथ महारथी भीष्‍म को सब ओर से घेर कर दूसरे सैन्य-दल के रूप में सुसज्जित होकर निकले-। सेना सहित कृतवर्मा, महारथी त्रिगर्त, भाइयों से घिरा हुआ महाराज दुर्योधन, शल, भूरिश्रवा, शल्य तथा कोसलराज बृहद्रथ- ये दुर्योधन को आगे करके उसके पीछे-पीछे [1] चले- धृतराष्ट्र के वे महाबली पुत्र रणक्षेत्र में जाकर कवच आदि से सुसज्जित हो कुरुक्षेत्र के पश्चिम भाग में यथोचित रूप से खडे़ हुए। भारत! दुर्योधन ने पहले से ही ऐसा निवास स्थान बनवा रखा था, जो दूसरे हस्तिनापुर की भाँति सजा हुआ था।

राजेन्द्र! नगर में निवास करने वाले चतुर मनुष्‍य भी उस शिविर तथा हस्तिनापुर नामक नगर में क्या अन्तर हैं, यह नहीं समझ पाते थे। अन्य राजाओं के लिये भी कुरुवंशी भूपाल ने वैसे ही सैकड़ों तथा सहस्रों दुर्ग बनवाये थे समरांगण के लिये पांच योजन का घेरा छोड़कर सैनिकों के ठहरने के लिये सौ-सौ की संख्‍या में कितनी ही श्रेणीबद्ध छावनियां डाली गयी थीं। उन्हीं बहुमूल्य आवश्‍यक सा‍मग्रियों से सम्पन्न हजारों छा‍वनियों में वे भूपाल अपने बल और उत्साह के अनुरूप युद्ध-के लिये उद्यत होकर रहते थे। राजा दुर्योधन सवारियों और सैनिकों सहित उन महामना नरेशों को परम उत्तम भक्ष्‍य-भोज्य पदार्थ देता था। हाथियों, अश्वों, पैदल मनुष्‍यों, शिल्प-जीवियों, अन्य अनुगामियों तथा सूत, मागध और बंदीजनों को भी राजा की ओर से भोजन प्राप्त होता था। वहाँ जो वणिक, गणिकाएं, गुप्तचर तथा दर्शक मनुष्‍य आते थे, उन सबकी कुरुराज दुर्योधन विधि‍पूर्वक देखभाल करता था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत अम्बोपाख्‍यानपर्व में कौरव-सेना का युद्ध के लिये प्रस्थानविषयक एक सौ पंचानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. तृतीय सैन्यदल में

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