महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 10 श्लोक 1-19

दशम (10) अध्‍याय: उद्योग पर्व (सेनोद्योग पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

इन्द्र सहित देवताओं का भगवान विष्णु की शरण में जाना और इन्द्र का उनके अज्ञानुसार संधि करके अवसर पाकर उसे मारना एवं ब्रह्महत्या के भय से जल में छिपना इन्द्र बोले- देवताओ! वृत्रासुर ने इस समपूर्ण जगत को आक्रान्त कर लिया है। इसके योग्य कोई ऐसा अस्त्र शस्त्र नहीं, है जो इसका विनाश कर सके। पहले मैं सब प्रकार से सामर्थ्यशाली था; किंतु इस समय असमर्थ हो गया हूँ। आप लोगों का कल्याण हो। बताइये, कैसे क्या काम करना चाहिये? मुझे तो वृत्रासुर दुर्जय प्रतीत हो रहा है। वह तेजस्वी और महाकाय है। युद्ध में उसके बल-पराक्रम की कोई सीमा नहीं है। वह चाहे तो देवता, असुर और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण त्रिलोकी को अपना ग्रास बना सकता है। अतः देवताओ! इस विषय में मेरे इस निश्चय को सुनो। हम लोग भगवान विष्णू के धाम में चलें और उन परमात्मा से मिलकर उन्‍हीं से सलाह करके उस दुरात्मा के वध का उपाय जानें।

शल्य बोले- राजन! इन्द्र के ऐसा कहने पर पर ऋषियों-सहित सम्पूर्ण देवता सबके शरणदाता अत्यन्त बलशाली भगवान विष्णु की शरण में गये। वे सबके सब वृत्रासुर भय से पीड़ित थे। उन्होंने देवेश्वर भगवान विष्णु से इस प्रकार कहा- प्रभो! आपने पूर्वकाल में अपने तीन डगों द्वारा सम्पूर्ण त्रिलोकी को माप लिया था। विष्णो! आपने ही (मोहिनी अवतार धारण करके) दैत्यों के हाथ से अमृत छीना एवं युद्ध में उन सबका संहार किया तथा महादैत्य बलि को बाँधकर इन्द्र को देवताओं का राजा बनाया। 'आप ही सम्पूर्ण देवताओं के स्वामी हैं। आप से ही यह समस्त चराचर जगत व्याप्त है। महादेव! आप ही अखिल विश्ववन्दित देवता हैं। सुरश्रेष्ठ! आप इन्द्र सहित सम्पूर्ण देवताओं के आश्रय हों। असुरसूदन! वृत्रासुर ने इस सम्पूर्ण जगत को आक्रान्त कर लिया है।

भगवान विष्णु बोले- देवताओ! मुझे तुम लोगों का उत्‍तम हित अवश्य करना है। अतः तुम सबको एक उपाय बताऊँगा, जिससे वृत्रासुर का अन्त होगा। तुम लोग ऋषियों और गन्धर्वों के साथ वहीं जाओ, जहाँ विश्वरूपधारी वृत्रासुर विद्यमान हैं। तुम लोग उसके साथ संधि कर लो तभी उसे जीत सकोगे। देवताओ! मेरे तेज से इन्द्र की विजय होगी। मैं इनके उत्‍तम आयुध वज्र में अदृश्य भाव से प्रवेश करूँगा। देवेश्वरगण! तुम लोग ऋषियों तथा गन्धर्वों के साथ जाओ और इन्द्र के साथ वृत्रासुर की संधि कराओ। इसमें विलम्ब न करो।

शल्य कहते हैं- राजन! भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर ऋषि तथा देवता एक साथ मिलकर देवेन्द्र को आगे करके वृत्रासुर के पास गये। समस्त महाबली देवता जब वृत्रासुर के समीप आये, तब वह अपने तेज से प्रज्वलित होकर दसों दिशाओं को तपा रहा था, मानो सूर्य और चन्द्रमा अपना प्रकाश बिखेर रहे हों। इन्द्र के साथ सम्पूर्ण देवताओं ने वृत्रासुर को देखा। वह ऐसा जान पड़ता था, मानों तीनों लोकों को अपना ग्रास बना लेगा। उस समय वृत्रासुर के पास आकर ऋषियों नें उससे यह प्रिय वचन कहा- दुर्जय वीर! तुम्हारे तेज से यह सारा जगत व्याप्त हो रहा है। बलवानों में श्रेष्ठ वृत्र! इतने पर भी तुम इन्द्र को जीत नहीं सकते। तुम दोनों को युद्ध करते बहुत समय बीत गया है। देवता ,असुर तथा मनुष्यों सहित सारी प्रजा इस युद्ध से पीड़ित हो रही है। अतः वृत्रासुर! हम चाहते हैं कि इन्द्र के साथ तुम्हारी सदा के लिये मैत्री हो जाय।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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