त्रिंश (30) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
नरदेव! तदनन्तर आपके सैनिक तथा देव कुमारों के समान तेजस्वी कुरुकुल भूषण आपके पुत्र असंख्य सेना साथ लेकर रणभूमि में शिनि पौत्र सात्यकि पर चढ़ आये। पैदल मनुष्यों, श्रेष्ठ घोडों, रथों और हाथियों से भरी और खारे पानी के समुद्र के समान भयंकर गर्जना करने वाली वह सेना अत्यन्त रक्त रंजित होकर देवताओं और असुरों की सेना के समान भयानक प्रतीत होती थी। उस समय देवराज इन्द्र के समान पराक्रमी सूर्यपुत्र कर्ण ने युद्ध स्थल में इन्द्र के छोटे भाई उपेन्द्र के समान शक्तिशाली शिनिवंश के प्रमुख वीर सात्यकि को सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी बाणों द्वारा घायल कर दिया। तब शिनिवंश शिरोमणि सात्यकि ने बड़ी उतावली के साथ विषधर सर्पों के समान विर्षिले नाना प्रकार के बाणों द्वारा रथ, घोड़े और सारथि सहित नरश्रेष्ठ कर्ण को भी आच्छादित कर दिया। उस समय आपके हितैषी सुहृद अतिरथी वीर वहाँ शिनिवंश शिरोमणि सात्यकि के शरों से अत्यंत पीड़ित हुए महारथी कर्ण के पास हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों की चतुरंगिनी सेना साथ लेकर तुरंत आ पहुँचे। तत्पश्चात धृष्टद्युम्न आदि शीघ्रकारी शत्रुओं ने आपकी समुद्र-सदृश विशाल वाहिनी पर आक्रमण किया और आपकी सेना भी शत्रुओं की ओर दौड़ी। फिर तो वहाँ मनुष्यों, रथों, घोड़ों और हाथियों का महान संहार होने लगा। तदनन्तर अपरान्ह काल के कृत्य समाप्त करके विधिपूर्वक भगवान शंकर की पूजा करने के पश्चात नरश्रेष्ठ अर्जुन और श्रीकृष्ण शत्रुओं के वध का निश्चय करके तुरंत आपकी सेना पर चढ़ आये। अर्जुन के रथ से मेघ की गर्जना के समान गम्भीर ध्वनि हो रही थी, पवन की प्रेरणा पाकर उसकी ऊँची पताका फहरा रही थी और उसमें श्वेत घोड़े जुते हुए थे। उस समय शत्रुओं ने उत्साह शून्य हृदय से उस रथ को समीप आते देखा। इसके बाद रथ पर नृत्य करते हुए से अर्जुन ने गाण्डीव धनुष को फैलाकर आकाश, दिशा और विदिशाओं को बाणों से भर दिया। जैसे वायु मेघों की घटा को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार उस समय अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा विमान जैसे रथों को आयुध, ध्वज और सारथियों सहित नष्ट कर दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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