त्रिसप्तत्यधिकशततम (173) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: त्रिसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद
फिर कर्ण युधिष्ठिर की सेना में पैदल ही चले गये। आर्य! वहाँ धृष्टद्युम्न सहदेव के रथ पर जा चढे़ और पुनः कर्ण का सामना करने के लिये जाने को उद्यत हुए, किन्तु धर्म पुत्र युधिष्ठिर ने उन्हें रोक दिया। उधर महातेजस्वी कर्ण ने सिंहनाद के साथ-साथ अपने धनुष की महती टंकार ध्वनि फैलायी और उच्च स्वर से शंख बजाया। युद्ध में धृष्टद्युम्न को परास्त हुआ देख अमर्ष में भरे हुए वे पांचाल और सोमक महारथी सूतपुत्र कर्ण के वध के लिये सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लेकर मृत्यु को ही युद्ध से निवृत्त होने की अवधि निश्चित करके उसकी ओर चल दिये। उधर कर्ण के रथ में भी उसके सारथि ने दूसरे घोड़े जोत दिये। वे सिंधी घोड़े अच्छी तरह सवारी का काम देते थे। उनका रंग शंख के समान सफेद था और वे बड़े वेगशाली थे। राधा पुत्र कर्ण का निशाना कभी चूकता नहीं था। जैसे मेघ किसी पर्वत पर जल की धारा गिराता है, उसी प्रकार वह प्रयत्नपूर्वक बाणों की वर्षा करके पांचाल महारथियों को पीड़ा देने लगा। कर्ण के द्वारा पीड़ित होने वाली पाञ्चालों की वह विशाल वाहिनी सिंह से सतायी गयी हरिणी की भाँति अत्यन्त भयभीत होकर वेगपूर्वक भागने लगी। कितने ही मनुष्य वहाँ इधर-उधर घोड़ों, हाथियों और रथों से तुरंत ही गिरकर धराशायी हुए दिखायी देने लगे।। कर्ण उस महासमर में अपने क्षुरप्रों द्वारा भागते हुए योद्धा की दोनों भुजाओं तथा कुण्डल मण्डित मस्तक को भी काट डाला था। माननीय प्रजानाथ! दूसरे योद्धा जो हाथियों पर बैठे थे, घोड़ों की पीठ पर सवार थे और पृथ्वी पर पैदल चलते थे, उनकी भी जाँघें कर्ण ने काट डाली। भागते हुए बहुत से महारथी उस युद्धस्थल में अपने कटे हुए अंगों और वाहनों को नहीं जान पाते थे। समरागंण में मारे जाते हुए पांचाल और सृंजय एक तिनके के हिल जाने से भी सूत पुत्र कर्ण को ही आया हुआ मानने लगते थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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