महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 67 श्लोक 1-13

सप्‍तषष्टितम (67) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व: सप्‍तषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-13 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का युधिष्ठिर से अब तक कर्ण को न मार सकने का कारण बताते हुए उसे मारने के लिये प्रतिज्ञा करना


संजय कहते हैं- राजन! क्रोध में भरे हुए धर्मात्‍मा नरेश की वह बात सुनकर अनन्‍त पराक्रमी अतिरथी महात्‍मा विजयशील अर्जुन ने उदारचित एवं दुर्जय राजा युधिष्ठिर से इस प्रकार कहा- 'राजन! आज जब मैं संशप्तकों के साथ युद्ध कर रहा था, उस समय कौरव सेना का अगुआ द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा विषधर सर्प के समान भयंकर बाणों का प्रहार करता हुआ सहसा मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। भूपाल शिरोमणे! इधर कौरवों की सारी सेना मेघ के समान गम्‍भीर घर्घर ध्‍वनि करने वाले मेरे रथ को देखकर युद्ध के लिये डटकर खड़ी हो गयी, तब मैंने उस सेना में से पांच सौ वीरों का वध करके आचार्यपुत्र पर आक्रमण किया। नरेन्‍द्र! जैसे गजराज सिंह की ओर दौड़े, उसी प्रकार अश्वत्‍थामा ने मुझे सामने पाकर विजय के लिये प्रयत्‍नशील हो मुझ पर आक्रमण किया। महाराज! उसने मारे जाते हुए कौरव रथियों का उद्धार करने की इच्‍छा की। भारत! तदनन्‍तर कौरवों के प्रधान वीर दुर्धर्ष आचार्य पुत्र ने रणक्षेत्र में विष और अग्‍नि के समान भयंकर तीखे बाणों द्वारा मुझे और श्रीकृष्‍ण को पी‌ड़ित करना प्रारम्‍भ किया। मेरे साथ युद्ध करते समय अश्वत्‍थामा के लिये आठ-आठ बैलों से जुते हुए आठ छकड़े सैकड़ों हजारों बाण ढोते र‍हते थे। उसके चलाये हुए उन सभी बाणों को मैंने अपने बाणों से मारकर उसी तरह नष्‍ट कर दिया, जैसे वायु मेघों के समूह को छिन्न-भिन्न कर देती है। तत्पश्चात जैसे वर्षाकाल में मेघों की काली घटा जल की वर्षा करती है, उसी प्रकार शिक्षा, अस्त्र, बल और प्रयत्नों द्वारा धनुष को कान तक खींचकर छोड़े गये बहुत से बाणसमूह उसने बरसाये।

द्रोणपुत्र अश्वत्‍थामा समरभूमि में चारों ओर चक्कर लगाने लगा। वह कब बाण लेता, कब उसे धनुष रखता और कब किस हाथ से बायें अथवा दायें से छोड़ता था, यह हम लोग नहीं जान पाते थे। केवल प्रत्‍यंचासहित तना हुआ उस द्रोणपुत्र का मण्‍डलाकार धनुष ही दिखायी देता था। उसने पांच तीखे बाणों से मुझको और पांच से श्रीकृष्‍ण को भी घायल कर दिया। तब मैंने पलक मारते-मारते वज्र के समान तीस सुदृढ़ बाणों द्वारा उसे क्षणभर में पीड़ित कर दिया। मेरे छोड़े हुए बाणों से घायल होने पर उसका स्‍वरुप कांटों से भरे साही के समान दिखायी देने लगे। तब वह सारे शरीर से खून की धारा बहाता हुआ मेरे द्वारा पीड़ित हुए समस्‍त सैनिक शिरोमणियों को खून से लथपथ देखकर सूतपुत्र कर्ण की रथसेना में घुस गया। तत्‍पश्चात युद्धस्‍थल में अपनी सेना के योद्धाओं को भय से आक्रान्‍त और हाथी घोड़ों को भागते देख पचास मुख्‍य-मुख्‍य रथियों को साथ ले शत्रुओं को मथ डालने वाला कर्ण बड़ी उतावली के साथ मेरे पास आया। उन पचासों रथियों का संहार करके कर्ण को छोड़कर मैं बड़ी उतावली के साथ आपका दर्शन करने के लिये चला आया हूँ। जैसे गौएं सिंह को देखकर डर जाती हैं, उसी प्रकार सारे पांचाल सैनिक कर्ण को देखकर उद्विग्‍न हो उठते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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