पंचनवतितम (95) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: पंचनवतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
जनमेजय बोले- ब्रह्मन्! मैं आपके मुख से पूर्ववर्ती राजाओं की उत्पत्ति का महान् वृत्तान्त सुना। इस पूरु वंश में उत्पन्न हुए राजाओं के नाम भी मैंने भली-भाँति सुन लिये। परंतु संक्षेप से कहा हुआ यह प्रिय आख्यान सुनकर मुझे पूर्णत: तृप्ति नहीं हो रही है। अत: आप मुझ पुन: विस्तारपूर्वक मुझसे इसी दिव्य कथा का वर्णन कीजिये। दक्ष प्रजापति और मनु से लेकर उन सब राजाओं का पवित्र जन्म-प्रसंग किसको प्रसन्न नहीं करेगा? उत्तम धर्म और गुणों के माहात्मय से अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त हुआ इन राजाओं का श्रेष्ठ और उज्ज्वल यश तीनों लोक में व्याप्त हो रहा है। ये सभी नरेश उत्तम गुण, प्रभाव, बल-पराक्रम, ओज, सत्तच (धैर्य) और उत्साह से सम्पन्न थे। इनकी कथा अमृत के समान मधुर है, उसे सुनते-सुनते मुझे तृप्ति नहीं हो रही है। वैशम्पायन जी ने कहा- राजन्! पूर्वकाल में मैंने महर्षि कृष्ण द्वैपायन के मुख से जिसका भली-भाँति श्रवण किया था, वह सम्पूर्ण प्रसंग तुम्हें सुनाता हूँ। अपने वंश की उत्पत्ति का वह शुभ वृत्तान्त सुनो। दक्ष से अदिति, अदिति से विवस्वान् (सूर्य), विवस्वान् से मनु, मनु से इला, इला से पुरूरवा, पुरूरवा से आयु, आयु से नहुष और नहुष से ययाति का जन्म हुआ। ययाति के दो पत्नीयां थीं; पहली शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी तथा दूसरी वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा। यहाँ उनके वंश का परिचय देने वाला यह श्लोक कहा जाता है- देवयानी ने यदु और तुर्वसु नाम वाले दो पुत्रों को जन्म दिया और वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा ने द्रह्यु, अनु तथा पूरु- ये तीन पुत्र उत्पन्न किये। इनमें यदु से यादव और पूरु से पौरव हुए। पूरु की पत्नी का नाम कौसल्या था (उसी को पौष्टि भी कहते हैं)। उसके गर्भ से पूरु के जनमेजय नामक पुत्र हुआ (इसी का दूसरा नाम प्रवीर है); जिसने तीन अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किया था और विश्वजित यज्ञ करके वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण किया था। जनमेजय मधुवंश की कन्या अनन्ता के साथ विवाह किया था। उसके गर्भ से उनके प्राचिन्वान् नामक पुत्र दिशा को एक ही दिन में जीत लिया था; इसीलिये उसका नाम प्रचिन्वान् हुआ। प्रचिन्वान् ने यदुकुल की कन्या अश्मकी को अपनी पत्नी बनाया। उसके गर्भ से उन्हें संयाति नामक पुत्र प्राप्त हुआ। संयाति ने दृषद्वान की पुत्री वरांगी से विवाह किया। उसके गर्भ से उन्हें अहंयाति नामक पुत्र हुआ। अहंयाति ने कृतवीर्यकुमारी भानुमति को अपनी पत्नी बनाया। उसके गर्भ से अहंयाति के सार्वभौम नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। सार्वभौम ने युद्ध में जीतकर केकयकुमारी सुनन्दा का अपहरण किया और उसी को अपनी पत्नी बनाया। उससे उसको जयत्सेन नामक पुत्र प्राप्त हुआ। जयत्सेन ने विदर्भराजकुमारी सुश्रुवा से विवाह किया। उसके गर्भ से उनके अवाचीन नामक पुत्र हुआ। अवाचीन ने भी विदर्भ राजकुमारी मर्यादा के साथ विवाह किया, जो आगे बतायी जाने वाली देवातिथि की पत्नी से भिन्न थी। उसके गर्भ से उन्हें ’अरिह’ नामक पुत्र हुआ। अरिह ने अंग देश की राजकुमारी से विवाह किया और उसके गर्भ से उन्हें महाभौम नामक पुत्र प्राप्त हुआ। महाभौम ने प्रसेनजित की पुत्री सुयज्ञा से विवाह किया उसके गर्भ से उन्हें अयुतनायी नामक पुत्र प्राप्त हुआ; जिसने दस हजार पुरुषमेध ‘यज्ञ’ किये। अयुत यज्ञों का आनयन (अनुष्ठान) करने के कारण ही उनका नाम अयुतनायी हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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