महाभारत वन पर्व अध्याय 155 श्लोक 1-23

पंचपंचाशदधिकशततम (155) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पंचपंचाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद


भयंकर उत्पात देखकर युधिष्ठिर आदि की चिन्ता और सब का गन्धमादन पर्वत पर सौगन्धिक वन में भीमसेन के पास पहुँचना

वैशम्पायन जी कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर भीमसेन ने अनेक प्रकार के बहुमूल्य, दिव्य और निर्मल बहुत-से सौगन्धिक कमल संग्रहीत कर लिये। इसी समय गन्धमादन पर्वत पर तीव्र वेग से बड़े जोर की आंधी उठी, जो नीचे कंकड़-बालू की वर्षा करने वाली थी। उसका स्पर्श तीक्ष्ण था। वह किसी भारी संग्राम की सूचना देने वाली थी। वज्र की गड़गडाहट के साथ अत्यन्त भयदायक भारी उल्कापात होने लगा। सूर्य अन्धकार से आवृत्त हो प्रभाशून्य हो गये। उनकी किरणें आच्छादित हो गयीं। जिस समय भीम राक्षसों के साथ युद्ध में भारी पराक्रम दिखा रहे थे, उस समय पृथ्वी हिलने लगी, आकाश में भीषण गर्जना होने लगी और धूल की वर्षा आरम्भ हो गयी। सम्पूर्ण दिशाएं लाल हो गयीं, मृग और पक्षी कठोर शब्द करने लगे, सारा जगत् अन्धकार से आच्छन्न हो गया और किसी को कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था।

इसके सिवा और भी बहुत-से भयानक उत्पात वहाँ प्रकट होने लगा। यह अद्भुत घटना देखकर वक्ताओं में श्रेष्ठ युधिष्ठिर ने कहा- 'कौन हम लोगों को पराजित कर सकेगा? रणोन्मत्त पांडवों! तुम्हारा भला हो, तुम युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। मैं जैसे लक्षण देख रहा हूँ, उससे पता लगता है कि हमारे लिए पराक्रम दिखाने का समय अत्यन्त निकट आ गया है।' ऐसा कहकर राजा युधिष्ठिर ने चारों ओर दृष्टिपात किया। जब भीम नहीं दिखायी दिये, तब शत्रुदमन धर्मनन्दन युधिष्ठिर ने द्रौपदी तथा पास ही बैठे हुए नकुल-सहदेव से अपने भाई भीम के सम्बन्ध में, जो रण-भूमि में भयानक कर्म करने वाले थे, पूछा- 'पांचाल राजकुमारी! भीमसेन कहाँ हैं? क्या वे कोई काम करना चाहते हैं? अथवा साहसप्रेमी वीरवर भीम ने कोई साहस का कार्य तो नहीं कर डाला? यह अकस्मात प्रकट हुए उत्पात महान् युद्ध के सूचक हैं। ये चारों ओर तीव्र भय का प्रदर्शन करते हुए प्रकट हो रहे हैं।'

धर्मराज युधिष्ठिर को ऐसी बातें करते देख मनोहर मुस्कान वाली मनस्विनी पतिप्रिया द्रौपदी ने उनका प्रिय करने की इच्छा से इस प्रकार उत्‍तर दिया। द्रौपदी बोली- 'राजन्! आज जो सौगन्धिक पुष्प वायु उड़ा लायी थी, उसे मैंने प्रसन्नतापूर्वक भीमसेन को दिया और उन वीर-शिरोमणि से यह भी कहा कि 'यदि इसी तरह के बहुत-से पुष्प तुम्हें दिखायी दें, तो उन सब को लेकर शीघ्र यहाँ लौट आना'। महाराज! मालूम होता है कि वे महाबाहु पाण्डुकुमार निश्चय ही मेरा प्रिय करने के लिये उन्हीं फूलों को लाने के निमित्त यहां से पूर्वात्तर दिशा को गये हैं।' द्रौपदी के ऐसा कहने पर राजा युधिष्ठिर ने नकुल-सहदेव से इस प्रकार कहा- 'अब हम लोग भी एक साथ शीघ्र ही उसी मार्ग पर चलें, जिससे भीमसेन गये हैं। देवताओं के समान तेजस्वी घटोत्कच! तुम्हारे साथी राक्षस लोग इन ब्राह्मणों को, जो जैसे थके और दुर्बल हों, उसके अनुसार कंधे पर बिठाकर ले चले और तुम भी द्रौपदी को ले चलो। यह स्पष्ट जान पड़ता है कि भीमसेन यहां से बहुत दूर चले गये हैं, मेरा यही विश्वास है। क्योंकि उनको गये बहुत समय हो गया है तथा वे वेग में वायु के समान हैं और इस पृथ्वी को लांघने में गरुड़ के समान शीघ्रगामी हैं। वे आकाश में छलांग मार सकते हैं और इच्छानुसार कहीं भी कूद सकते हैं। निशाचरो! भीमसेन ब्रह्मवादी सिद्धों का कुछ अपराध न कर दे, इसके पहले ही तुम्हारे प्रभाव से हम उन्हें ढूंढ निकालें'।

जनमेजय! तब कुबेर के उस सरोवर का पता जानने वाले उन घटोत्कच आदि सब राक्षसों ने 'तथास्तु' कहकर पाण्डवों तथा उन अनेकानेक ब्राह्मणों को कंधे पर बैठाकर लोमश जी के साथ वहां से प्रसन्नतापूर्वक प्रस्थान किया। उन सब ने शीघ्रतापूर्वक जाकर सुन्दर वनस्थली से सुशोभित वह अत्यन्त मनोरम सरोवर देखा, जिसमें सौगन्धिक कमल थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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