महाभारत वन पर्व अध्याय 154 श्लोक 20-27

चतुष्पंचाशदधिकशततम (154) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: चतुष्पंचाशदधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 20-27 का हिन्दी अनुवाद


महामना भीम ने शत्रुओं के भाँति-भाँति के पैंतरों तथा अस्त्र-शस्त्रों को विफल करके उनके सौ से भी अधिक प्रमुख वीरों को उस सरोवर के समीप मार गिराया। भीमसेन का पराक्रम, शारीरिक बल, विद्याबल और बाहुबल देखकर वे वीर राक्षस एक साथ संगठित होकर भी उनका वेग सहने में असमर्थ हो गये और सहसा सब ओर से युद्ध छोड़कर निवृत्त हो गये।

भीमसेन की मार से क्षत-विक्षत एवं पीड़ित हो वे क्रोधवश नामक राक्षस अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। अतः उनके पांव उखड़ गये और वे तुरंत वहाँ से आकाश में उड़कर कैलास के शिखरों पर भाग गये। शत्रुविजयी भीम इन्द्र की भाँति पराक्रम करके दानव और दैत्यों के दल को युद्ध में हराकर सरोवर में प्रविष्ट हो इच्छानुसार कमलों का संग्रह करने लगे। तदनन्तर उस सरोवर का अमृत के समान मधुर जल पीकर वे पुनः उत्‍तम बल और तेज से सम्पन्न हो गये और श्रेष्ठ सुगन्ध से युक्त सौगन्धिक कमलों को उखाड़-उखाड़ कर संगृहित करने लगे। तब भीमसेन के बल से पीड़ित और अत्यन्त भयभीत हुए क्रोधवशों ने धनाध्यक्ष कुबेर के पास जाकर युद्ध में भीम के बल और पराक्रम का यथावत् वृतान्त कह सुनाया।

उनकी बातें सुनकर देवप्रवर कुबेर ने हंसकर उन राक्षसों से कहा- 'मुझे यह मालूम है। भीमसेन को द्रौपदी के लिये इच्छानुसार कमल ले लेने दो।'

तब धनाध्यक्ष की आज्ञा पाकर वे राक्षस रोषरहित हो कुरुप्रवर भीम के पास गये और उन्हें अकेले ही उस सरोवर में इच्छानुसार विहार करते देखा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में सौगन्धिकाहरण विषयक एक सौ चोवनवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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