महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 58 श्लोक 1-19

अष्टपंचाशत्तम (58) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद


जलाशय बनाने का तथा बगीचे लगाने का फल

युधिष्ठिर ने कहा- कुरुकुलपुंगव! भरतश्रेष्ठ! बगीचे लगाने और जलाशय बनवाने का जो फल होता है, उसी को अब में आपके मुख से सुनना चाहता हूँ।

भीष्म जी बोले- राजन! जो देखने में सुन्दर हो, जहाँ की मिट्टी प्रबल, अधिक अन्न उपजाने वाली हो, जो विचित्र एवं अनेक धातुओं से विभूषित हो तथा समस्त प्राणी जहाँ निवास करते हों, वही भूमि यहाँ श्रेष्ठ बतायी जाती है। उस भूमि से सम्बन्ध रखने वाले विशेष-विशेष क्षेत्र, उनमें पोखरों के निर्माण तथा अन्य सब जलाशय-कूप आदि- इन सबके विषय में क्रमश: आवश्‍यक बातें बताऊँगा। पोखरें बनवाने से जो लाभ होते हैं, उनका भी मैं वर्णन करूँगा।

पोखरें बनवाने वाला मनुष्य तीनों लोकों में सर्वत्र पूजनीय होता है अथवा पोखरों का बनवाना मित्र के घर की भाँति उपकारी, मित्रता का हेतू और मित्रों की वृद्धि करने वाला तथा कीर्ति के विस्तार का सर्वोत्तम साधन है। मनीषी पुरुष कहते हैं कि देश या गांव में एक तालाब का निमार्ण धर्म, अर्थ और काम तीनों का फल देने वाला है तथा पोखरों से सुशोभित होने वाला स्थान समस्त प्राणियों के लिये एक महान आश्रय है। तालाब को चारों प्रकार के प्राणियों के लिये बहुत बड़ा आधार समझना चाहिये। सभी प्रकार के जलाशय उत्तम संपत्ति प्रदान करते हैं। देवता, मनुष्य, गन्धर्व, पितर, नाग, राक्षस तथा समस्त स्थावर प्राणी जलाशय का आश्रय लेते हैं। अतः ऋषियों ने तालाब बनवाने से जिन फलों की प्राप्ति बतलाई है तथा तालाब से जो लाभ होते हैं, उन सब को मैं तुम्हें बताऊँगा।

जिसके खोदवाये हुए तालाब में बरसात भर पानी रहता है, उसके लिये मनीषी पुरुष अग्निहोत्र के फल की प्राप्ति बताते हैं। जिसके तालाब में शरत्काल तक पानी ठहरता है, वह मृत्यु के पश्‍चात एक हज़ार गोदान का उत्तम फल पाता है। जिसके तालाब में हेमन्त (अगहन-पौष) तक पानी रुकता है, वह बहुत-से सुवर्ण की दक्षिणा से युक्त महान यज्ञ के फल का भागी होता है। जिसके जलाशय में शिशिरकाल (माघ-फाल्गुन) तक जल रहता है, उसके लिये मनीषी पुरुषों ने अग्निष्टोम नामक यज्ञ के फल की प्राप्ति बतायी है। जिसका खोदवाया हुआ पोखरा वसंत ऋतु तक अपने भीतर जल रखने के कारण प्यासे प्राणियों के लिये महान आश्रय बना रहता है, उसे अतिरात्र यज्ञ का फल प्राप्त होता है। जिसके तालाब में ग्रीष्म ऋतु तक पानी रुका रहता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है- ऐसा मुनियों का मत है।

जिसके खोदवाये हुए जलाशय में सदा साधु पुरुष और गौऐं पानी पीती हैं, वह अपने समस्त कुल का उद्धार कर देता है। जिसके तालाब में प्यासी गौऐं पानी पीती हैं तथा मृग, पक्षी और मनुष्यों को भी जल सुलभ होता है, वह अश्‍वमेध यज्ञ का फल पाता है। यदि किसी के तालाब में लोग स्नान करते, पानी पीते और विश्राम करते हैं तो इन सब का पुण्य उस पुरुष के मरने के बाद अक्षय सुख प्रदान करता है। तात! जल दुलर्भ पदार्थ है। परलोक में तो उसका मिलना और भी कठिन है। जो जल का दान करते हैं, वे ही वहाँ जलदान के पुण्य से सदा तृप्त रहते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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