महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व अध्याय 4 श्लोक 1-23

चतुर्थ (4) अध्‍याय: स्‍वर्गारोहण पर्व

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महाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर का दिव्‍यलोक में श्रीकृष्‍ण, अर्जुन आदि का दर्शन करना

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर देवताओं, ऋषियों और मरुद्गणों के मुँह से अपनी प्रशंसा सुनते हुए राजा युधिष्ठिर क्रमश: उस स्‍थान पर जा पहुँचे, जहाँ वे कुरुश्रेष्ठ भीमसेन और अर्जुन आदि विराजमान थे। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण अपने ब्राह्मविग्रह से सम्पन्न हैं। पहले के देखे गये सादृश्‍य से ही वे पहचाने जाते हैं। उनके श्रीविग्रह से अद्भुत दीप्ति छिटक रही है। चक्र आदि दिव्‍य एवं भयंकर अस्त्र-शस्त्र दिव्‍य पुरुषविग्रह धारण करके उनकी सेवा में उपस्थित हैं। अत्यन्त तेजस्‍वी वीरवर अर्जुन भगवान की आराधना में लगे हुए हैं। कुन्तीकुमार युधिष्ठिर ने भगवान मधुसूदन का उसी स्‍वरूप में दर्शन किया। पुरुषसिंह अर्जुन और श्रीकृष्ण देवताओं द्वारा पूजित थे। इन दोनों ने युधिष्ठिर को उपस्थित देख उनका यथावत् सम्मान किया।

इसके बाद दूसरी ओर दृष्टि डालने पर कुरुनन्दन युधिष्ठिर ने शस्‍त्रधारियों में श्रेष्ठ कर्ण को देखा, जो बारह आदित्यों के साथ (तेजोमय स्‍वरूप धारण किये) विराजमान थे। फिर दूसरे स्‍थान में उन्होंने दिव्‍यरूपधारी भीमसेन को देखा, जो पहले ही के समान शरीर धारण किये मूर्तिमान वायु देवता के पास बैठे थे। उन्हें सब ओर से मरुद्गणों ने घेर रखा था। वे उत्तम कान्ति से सुशोभित एवं उत्कृष्ट सिद्धि को प्राप्त थे। कुरुनन्दन युधिष्ठिर ने नकुल और सहदेव को अश्विनीकुमारों के स्‍थान में विराजमान देखा, जो अपने तेज से उद्दीप्त हो रहे थे। तदनन्तर उन्होंने कमलों की माला से अलंकृत पांचाल राजकुमारी द्रौपदी को देखा, जो अपने तेजस्‍वी स्‍वरूप से स्वर्ग लोक को अभिभूत करके विराज रही थीं। उनकी दिव्‍य कान्ति सूर्यदेव की भाँति प्रकाशित हो रही थी। राजा युधिष्ठिर ने इन सबके विषय में सहसा प्रश्‍न करने का विचार किया।

तब देवराज भगवान इन्द्र स्‍वयं ही उन्हें सबका परिचय देने लगे- "युधिष्ठिर! ये जो लोककमनीय विग्रह से युक्‍त पवित्र गन्ध वाली देवी दिखायी दे रही हैं, साक्षात भगवती लक्ष्मी हैं। ये ही तुम्हारे लिये मनुष्य लोक में जाकर अयोनिसम्भूता द्रौपदी के रूप में अवतीर्ण हुई थीं। स्‍वयं भगवान शंकर ने तुम लोगों की प्रसन्नता के लिये इन्हें प्रकट किया था और ये ही द्रुपद के कुल में जन्म धारण कर तुम सब भाइयों के द्वारा अनुगृहीत हुई थीं। राजन! ये जो अग्नि के समान तेजस्‍वी और महान सौभाग्‍यशाली पाँच गन्धर्व दिखायी देते हैं, ये ही तुम लोगों के वीर्य से उत्पन्न हुए द्रौपदी के अनन्त बलशाली पुत्र हुए थे। इन मनीषी गन्धर्वराज धृतराष्ट्र का दर्शन करो और इन्हीं को अपने पिता का बड़ा भाई समझो। ये रहे तुम्हारे बड़े भाई कुन्तीकुमार कर्ण जो अग्नितुल्‍य तेज से प्रकाशित हो रहे हैं। ये ही सूतपुत्रों के श्रेष्ठ अग्रज थे और ये ही 'राधापुत्र' के नाम से विख्यात हुए थे। इन पुरुषप्रवर कर्ण का दर्शन करो, ये आदित्यों के साथ जा रहे हैं।

राजेन्द्र! उधर वृष्णि और अन्धक कुल के सात्यकि आदि वीर महारथियों और महान बलशाली भोजों को देखो। वे साध्‍यों, विश्वेदेवों तथा मरुद्गणों में विराजमान हैं। इधर किसी से परास्‍त न होने वाले महाधनुर्धर सुभद्राकुमार अभिमन्यु की ओर दृष्टि डालो। यह चन्द्रमा के साथ इन्हीं के समान कान्ति धारण किये बैठा है। ये महाधनुर्धर राजा पांडु हैं, जो कुन्ती और माद्री दोनों के साथ हैं। ये तुम्हारे पिता पांडु विमान द्वारा सदा मेरे पास आया करते हैं। शान्तनुनन्दन राजा भीष्म का दर्शन करो, ये वसुओं के साथ विराज रहे हैं। द्रोणाचार्य बृहस्पति के साथ हैं। अपने इन गुरुदेव को अच्‍छी तरह देख लो। पांडुनन्दन! ये तुम्हारे पक्ष के दूसरे भूपाल योद्धा गन्धर्वों, यक्षों तथा पुण्यजनों के साथ जा रहे हैं। किन्हीं-किन्हीं राजाओं को गुह्यकों की गति प्राप्त हुई है। ये सब युद्ध में शरीर त्यागकर अपनी पवित्र वाणी, बुद्धि और कर्मों के द्वारा स्‍वर्ग लोक पर अधिकार प्राप्त कर चुके हैं।"


इस प्रकार श्रीमहाभारत स्‍वर्गारोहण पर्व में द्रौपदी आदि का अपने-अपने स्‍थान में गमन विषयक चौथा अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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