महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 67 श्लोक 1-10

सप्तषष्टितम (67) अध्‍याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: सप्तषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-10 का हिन्दी अनुवाद

धृतराष्‍ट्र के पास व्यास और गान्धारी का आगमन तथा व्यासजी का संजय को श्रीकृष्‍ण और अर्जुन के सम्बन्ध में कुछ कहने का आदेश

  • वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! धृतराष्‍ट्र पुत्र दुर्योधन ने जब श्रीकृष्‍ण और अर्जुन के उस कथन का कुछ भी आदर नहीं किया और सब लोग चुप्पी साधकर रह गये, तब वहाँ बैठे हुए समस्त नरश्रेष्‍ठ भूपालगण वहाँ से उठकर चले गये। (1)
  • महाराज! भूमण्‍डल के सब राजा जब सभा भवन से उठ गये, तब अपने पुत्रों की विजय चाहने वाले तथा उन्हीं के वश मे रहने वाले राजा धृतराष्‍ट्र ने वहाँ एकान्त में अपनी, दूसरों की और पाण्‍डवों की जय-पराजय के विषय में संजय का निश्चित मत जानने के लिये उनसे कुछ और बातें पूछनी प्रारम्भ की। (2-3)
  • धृतराष्‍ट्र बोले- गवल्गणपुत्र संजय! यहाँ अपनी सेना में जो कुछ भी प्रबलता या दुर्बलता है, उसका हमसे वर्णन करो। इसी प्रकार पाण्‍डवों की भी सारी बातें तुम अच्छी तरह जानते हो, अत: बताओ; ये किन बातों में बढे़-चढे़ हैं और उनमें कौन-कौन-सी त्रुटियां है? (4)
  • संजय! तुम इन दोनों पक्षों के बलाबल को जानने वाले, सर्वदर्शी, धर्म और अर्थ के ज्ञान में निपुण तथा निश्चित सिद्धान्त के ज्ञाता हो; अत: मेरे पूछने पर सब बातें साफ-साफ कहो। युद्ध में प्रवृत्त होने पर किस पक्ष के लोग इस लोक में जीवित नहीं रह सकते? (5)
  • संजय ने कहा- राजन! एकान्त में तो मैं आप से कभी कोई बात नहीं कह सकता, क्योंकि इससे आपके हृदय में दोष दर्शन की भावना उत्पन्न होगी। अजमीढनन्दन! आप अपने महान व्रतधारी पिता व्यास जी और महारानी गान्धारी को भी यहाँ बुलवा लीजिये। (6)
  • नरेन्द्र! वे दोनों धर्म के ज्ञाता, विचार कुशल तथा सिद्धान्त को समझने वाले हैं; अत: वे आपकी दोष दृष्टि का निवारण करेंगे। उन दोनों के समीप मैं आपको श्रीकृष्‍ण और अर्जुन का जो विचार है, वह पूरा-पूरा बता दूंगा। (7)
  • वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! संजय के ऐसा कहने पर धृतराष्‍ट्र की प्रेरणा से गान्धारी तथा महर्षि व्यास वहाँ आये। विदुर जी उन्हें यहाँ बुलाकर ले आये और सभा भवन से शीघ्र ही उनका प्रवेश कराया। (8)
  • तदनन्तर परम ज्ञानी श्रीकृष्‍ण द्वैपायन व्यास सभा भवन में पहुँचकर संजय तथा अपने पुत्र धृतराष्‍ट्र के उस विचार को जानकर इस प्रकार बोले- (9)
  • व्यासजी ने कहा- संजय! धृतराष्‍ट्र तुमसे जो कुछ जानना चाहते हैं, वह सब इन्हें बताओं। ये भगवान श्रीकृष्‍ण तथा अर्जुन के विषय में जो कुछ पूछते हैं, वह सब, जितना तुम जानते हो, उसके अनुसार यथार्थ रूप से कहो। (10)

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत यानसंधिपर्व में व्यास और गान्धारी के आगमन से सम्बन्ध रखने वाला सरसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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