महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 149 श्लोक 1-14

एकोनपन्चाशदधिकशततम (149) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: एकोनपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रम

जिनके स्मरण करने मात्र से मनुष्य जन्म-मृत्यु-रूप संसार बन्धन से मुक्त हो जाता है, सबकी उत्पत्ति के कारणभूत उन भगवान विष्णु को नमस्कार है। सम्पूर्ण प्राणियों के आदिभूत, पृथ्वी को धारण करने वाले, अनेक रूपधारी और सर्वसमर्थ भगवान विष्णु को प्रणाम है।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर ने सम्पूर्ण विधिरूप धर्म तथा पापों का क्षय करने वाले धर्म-रहस्यों को सब प्रकार सुनकर शान्तनुपुत्र भीष्म से फिर पूछा।

युधिष्ठिर बोले- दादा जी! समस्त जगत में एक ही देव कौन है तथा इस लोक में एक ही परम आश्रयस्थान कौन है? किस देव की स्तुति-गुण-कीर्तन करने से तथा किस देव का नाना प्रकार से बाह्य और आन्तरिक पूजन करने से मनुष्य कल्याण की प्राप्ति कर सकते हैं? आप समस्त धर्मों में किस धर्म को परम श्रेष्ठ मानते हैं? तथा किसका जप करने से जीव जन्म-मरणरूप संसार-बन्धन से मुक्त हो जाता है?

भीष्म जी ने कहा- बेटा! स्थावर-जंगमरूप संसार के स्वामी, ब्रह्मादि देवों के देव, देश-काल और वस्तु से अपरिच्छिन्न, क्षर-अक्षर से श्रेष्ठ पुरुषोत्तम का सहस्रनामों के द्वारा निरन्तर तत्पर रहकर गुण-संकीर्तन करने से पुरुष सब दु:खों से पार हो जाता है तथा उसी विनाशरहित पुरुष का सब समय भक्ति से युक्त होकर पूजन करने से, उसी का ध्यान करने से तथा स्तवन एवं नमस्कार करने से पूजा करने वाला सब दु:खों से छूट जाता है। उस जन्म-मृत्यु आदि छः भाव-विकारों से रहित, सर्वव्यापक, सम्पूर्ण लोकों के महेश्वर, लोकाध्यक्ष देव की निरन्तर स्तुति करने से मनुष्य सब दु:खों से पार हो जाता है।

ब्राह्मणों के हितकारी, सब धर्मों को जानने वाले, प्राणियों की कीर्ति को बढ़ाने वाले, सम्पूर्ण लोकों के स्वामी, समस्त भूतों के उत्पत्ति-स्थान एवं संसार के कारणरूप परमेश्वर का स्तवन करने से मनुष्य सब दु:खों से छूट जाता है। सम्पूर्ण धर्मों में मैं इसी धर्म को सबसे बड़ा मानता हूँ कि मनुष्य कमलनयन भगवान वासुदेव का भक्तिपूर्वक गुण-संकीर्तनरूप स्तुतियों से सदा अर्चन करे। पृथ्वीपते! जो परम महान तेजःस्वरूप है, जो परम महान तपःस्वरूप है, जो परम महान ब्रह्म है, जो सबका परम आश्रय है, जो पवित्र करने वाले तीर्थादिकों में परम पवित्र है, मंगलों का भी मंगल है, देवों का भी देव है तथा जो भूतप्राणियों का अविनाशी पिता है, कल्प के आदि में जिससे सम्पूर्ण भूत उत्पन्न होते हैं और फिर युग का क्षय होने पर महाप्रलय में जिसमें वे विलीन हो जाते हैं, उस लोकप्रधान, संसार के स्वामी, भगवान विष्णु के हजार नामों को मुझसे सुनो, जो पाप और संसार-भय को दूर करने वाले हैं। महान आत्मस्वरूप विष्णु के जो नाम गुण के कारण प्रवृत्त हुए हैं, उनमें से जो-जो प्रसिद्ध हैं और मन्त्रदृष्टा मुनियों द्वारा जो सर्वत्र गाये गये हैं, उन समस्त नामों को पुरुषार्थ-सिद्धि के लिये वर्णन करता हूँ।

ऊँ सच्चिदानन्दस्वरूप, 1. विश्वम्- विराट्स्वरूप, 2. विष्णुः- सर्वव्यापी, 3. वषट्कारः- जिनके उद्देश्य से यज्ञ में वषट् क्रिया की जाती है, ऐसे यज्ञस्वरूप, 4. भूतभव्यभवत्प्रभुः- भूत, भविष्यत् और वर्तमान के स्वामी, 5. भूतकृत्-रजोगुण को स्वीकार करके ब्रह्मारूप से सम्पूर्ण भूतों की रचना करने वाले, 6. भूतभृत्- सत्त्वगुण को स्वीकार करके सम्पूर्ण भूतों का पालन-पोषण करने वाले, 7. भावः- नित्यस्वरूप होते हुए भी स्वतः उत्पन्न होने वाले, 8. भूतात्मा- सम्पूर्ण भूतों के आत्मा, 9. भूतभावनः- भूतों की उत्पत्ति और वृद्धि करने वाले।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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