महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 78 श्लोक 1-16

अष्टसप्ततितम (78) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टसप्ततितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


वसिष्‍ठ का सौदास को गोदान की विधि एवं महिमा बताना

भीष्म जी कहते हैं- राजन! एक समय की बात है, वक्ताओं में श्रेष्ठ इक्ष्वाकुवंशी राजा सौदास ने सम्पूर्ण लोकों में विचरने वाले, वैदिक ज्ञान के भण्डार, सिद्ध सनातन ऋषिश्रेष्ठ वसिष्ठ जी से, जो उन्हीं के पुरोहित थे, प्रणाम करके इस प्रकार पूछना आरंभ किया।

सौदास बोले- भगवन! निष्पाप महर्षे! तीनों लोकों में ऐसी पवित्र वस्तु कौन कही जाती है, जिसका नाम लेने मात्र से मनुष्य को सदा उत्तम पुण्य की प्राप्ति हो सके?

भीष्म जी कहते हैं- राजन! अपने चरणों में पड़े हुए राजा सौदास से गवोपनिषद् (गौओं की महिमा के गूढ रहस्य को प्रकट करने वाली विद्या) के विद्वान पवित्र महर्षि वसिष्ठ ने गौओं को नमस्कार करके इस प्रकार कहना आरंभ किया- राजन! गौओं के शरीर से अनेक प्रकार की मनोरम सुगंध निकलती रहती है तथा बहुतेरी गौएँ गुग्गुल के समान गंध वाली होती हैं। गौएँ समस्त प्राणियों की प्रतिष्ठा (आधार) हैं और गौएँ ही उनके लिये महान मंगल की निधि हैं। गौएँ ही भूत और भविष्य हैं। गौएँ ही सदा रहने वाली पुष्टि का कारण तथा लक्ष्मी की जड़ हैं। गौओं को जो कुछ दिया जाता है, उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता। गौएँ ही सर्वोत्तम अन्न की प्राप्ति में कारण हैं। वे ही देवताओं को उत्तम हविष्य प्रदान करती हैं। स्वाहाकार (देवयज्ञ) और वषट्कार (इन्द्रयाग)- ये दोनों कर्म सदा गौओं पर अबलम्बित हैं। गौएँ ही यज्ञ का फल देने वाली हैं। उन्हीं में यज्ञों की प्रतिष्ठा है। गौएँ ही भूत और भविष्य हैं। उन्हीं में यज्ञ प्रतिष्ठित हैं, अर्थात यज्ञ गौओं पर ही निर्भर हैं।

महातेजस्वी पुरुषप्रवर! प्रातःकाल और सायंकाल सदा होम के समय ऋषियों को गौएँ ही हवनीय पदार्थ (घृत आदि) देती हैं। प्रभो! जो लोग (नवप्रसूति का दूध देने वाली) गौ का दान करते हैं, वे जो कोई भी दुर्गम संकट आने वाले हैं, उन सबसे अपने किये हुए दुष्कर्मों से तथा समस्त पाप समूह से भी तर जाते हैं। जिसके पास दो गौएँ हों, वह एक गौ का दान करे। जो सौ गाय रखता हो, वह दस गौओं का दान करे और जिसके पास एक हज़ार गौएँ मौजूद हों, वह सौ गौएँ दान में दे तो इन सबको बरावर ही फल मिलता है। जो सौ गौओं का स्वामी होकर भी अग्निहोत्र नहीं करता, जो हज़ार गौएँ रखकर भी यज्ञ नहीं करता तथा जो धनी होकर भी कृपणता नहीं छोड़ता- ये तीनों मनुष्य अर्घ्य (सम्मान) पाने के अधिकारी नहीं हैं।

जो उत्तम लक्षणों से युक्त कपिला गौ को वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े सहित उसका दान करते हैं और उसके साथ दूध दोहने के लिये कांस्य का एक पात्र भी देते हैं, वे इहलोक और परलोक दोनों पर विजय पाते हैं। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! जो लोग जवान, सभी इन्द्रियों से सम्पन्न, सौ गायों के यूथपति, बड़ी-बड़ी सींगों वाले गवेन्द्र वृषभ (सांड़) को सुसज्जित करके सौ गायों सहित उसे श्रोत्रिय ब्राह्मण को दान करते हैं, वे जब-जब इस संसार में जन्म लेते हैं, तब-तब महान ऐश्‍वर्य के भागी होते हैं। गौओं का नाम-कीर्तन किये बिना न सोयें, उनका स्मरण करके ही उठें और सबेरे-शाम उन्हें नमस्कार करें। इससे मनुष्य को बल एवं पुष्टि प्राप्त होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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