षट्षष्टितम (66) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
कुन्तीनन्दन! जो जगत के श्रेष्ठ पुरुषों और आश्रमियों का निरन्तर सत्कार करता है, उसे भी वानप्रस्थ-आश्रम द्वारा मिलने वाले फलों की प्राप्ति होती है। कुन्तीनन्दन! जो नित्यप्रति संध्या-वन्दन आदि नित्यकर्म, पितृश्राद्ध, भूतयज्ञ, मनुष्य यज्ञ (अतिथि-सेवा)- इन सबका अनुष्ठान प्रचुर मात्रा में करता रहता है, उसे वानप्रस्थाश्रम के सेवन से मिलने वाले पुण्य फल की प्राप्ति होती है। राजेन्द्र! बलि वैश्वदेव के द्वारा प्राणियों को उनका भाग समर्पित करने से, अतिथियों के पूजन से तथा देवयज्ञों के अनुष्ठान से भी वानप्रस्थ-सेवन का फल प्राप्त होता है। सत्यपराक्रमी पुरुषसिंह युधिष्ठिर! शिष्टपुरुषों की रक्षा के लिये अपने शत्रु के राष्ट्रों को कुचल डालने वाले राजा को भी वानप्रस्थ-सेवन का फल प्राप्त होता है। समस्त प्राणियों के पालन तथा अपने राष्ट्र की रक्षा करने से राजा को नाना प्रकार के यज्ञों की दीक्षा लेने का पुण्य प्राप्त होता है। राजन् इससे वह संन्यासाश्रम के सेवन का फल प्राप्त करता है। जो प्रतिदिन वेदों का स्वध्याय करता है, क्षमा भाव रखता है, आचार्य की पूजा करता है और गुरु की सेवा में संलग्न रहता है, उसे ब्रह्माश्रम (संन्यास) द्वारा मिलने वाला फल प्राप्त होता है। पुरुष सिंह! जो प्रतिदिन इष्ट-मान्त्र का जप और देवताओं का सदा पूजन करता है, उसे उस धर्म के प्रभाव से धर्माश्रम के पालन का अर्थात् गार्हस्थ्य धर्म के पालन का पुण्य फल प्राप्त होता है। जो राजा युद्ध में प्राणों की बाजी लगाकर इस निश्चय के साथ शत्रुओं का सामना करता है कि ‘या तो मैं मर जाऊँगा या देश की रक्षा करके ही रहूँगा‘ उसे भी ब्रह्माश्रम अर्थात संन्यास-आश्रम के पालन का ही फल प्राप्त होता है। भनतनन्दन! जो सदा समस्त प्राणियों के प्रति माया और कुटिलता से रहित यथार्थ व्यवहार करता है, उसे भी ब्रह्माश्रम सेवन का ही फल प्राप्त होता है। भारत! जो वानप्रस्थ, ब्राह्मणों तथा तीनों वेद के विद्वानों को प्रचुर धन दान करता है, उसे वानप्रस्थ-आश्रम के सेवन का फल मिलता है। भनतनन्दन! जो समस्त प्राणियों पर दया करता है और क्रूरता रहित कर्मों में ही प्रवृत्त होता है, उसे सभी आश्रमों के सेवन का फल प्राप्त होता है। कुन्तीकुमार युधिष्ठिर! जो बालकों और बूढों के प्रति दयापूर्वक बर्ताव करता है, उसे भी सभी आश्रमों के सेवन का फल प्राप्त होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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