महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 143 श्लोक 1-23

त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम (143) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: त्रिचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण के द्वारा पाण्‍डवों की विजय और कौरवों की पराजय सूचित करने वाले लक्षणों एवं अपने स्‍वपन का वर्णन

  • संजय कहते हैं- राजन! भगवान केशव का वह हितकर एवं कल्‍याणकारी वचन सुनकर कर्ण मधुसूदन श्रीकृष्‍ण के प्रति सम्‍मान का भाव प्रदर्शित करते हुए इस प्रकार बोला। (1)
  • महाबाहो! आप सब कुछ जानते हुए भी मुझे मोह में क्‍यों डालना चाहते हैं? यह जो इस भूतल का पूर्णरूप से विनाश उपस्थित हुआ है, उसमें मैं, शकुनि, दु:शासन तथा धृतराष्ट्र पुत्र राजा दुर्योधन निमित मात्र हुए हैं। (2-3)
  • ‘श्रीकृष्‍ण! इसमें संदेह नहीं कि कौरवों और पाण्‍डवों का यह बड़ा भयंकर युद्ध उपस्थित हुआ है, जो रक्‍त की कीच मचा देने वाला है। (4)
  • दुर्योधन के वश में रहने वाले जो राजा और राजकुमार हैं, वे रणभूमि में अस्‍त्र-शस्‍त्रों की आग से जलकर निश्‍चय ही यमलोक में जा पहुँचेंगे। (5)
  • मधुसूदन! मुझे बहुत से भयंकर स्‍वप्‍न दिखायी देते हैं। घोर अपशकुन तथा अत्‍यन्‍त दारुण उत्‍पात दृष्टिगोचर होते हैं। (6)
  • वृष्णिनन्‍दन! वे रोंगटे खड़े कर देने वाले विविध उत्‍पात मानो दुर्योधन की पराजय और युधिष्ठिर की विजय घोषित करते हैं। (7)
  • महातेजस्‍वी एवं तीक्ष्‍ण ग्रह शनैश्रर प्रजापति सम्‍बन्‍धी रोहिणी नक्षत्र को पीड़ित करते हुए जगत के प्राणियों को अधिक से अधिक पीड़ा दे रहे हैं। (8)
  • मधुसूदन! मंगल ग्रह ज्‍येष्‍ठा के निकट से वक्र गति का आश्रय ले अनुराधा नक्षत्र पर आना चाहते हैं। जो राज्‍यस्‍थ राजा के मित्रमण्‍डल का विनाश-सा सूचित कर रहें हैं। (9)
  • वृष्णिनन्‍दन श्रीकृष्‍ण! निश्‍चय ही कौरवों पर महान भय उपस्थित हुआ हैं। विशेषत: ‘महापात’ नामक ग्रह चित्रा को पीड़ा दे रहा है जो राजाओं के विनाश का सूचक है। (10)
  • चन्‍द्रमा का कलंक [1] मिट-सा गया है, राहु सूर्य के समीप जा रहा है। आकाश से ये उल्‍काएँ गिर रही हैं,वज्रपात के-से शब्‍द हो रहे हैं और धरती डोलती सी जान पड़ती है। (11)
  • ‘माधव! गजराज परस्‍पर टकराते और विकृत शब्‍द करते हैं। घोड़े नेत्रों से आंसू बहा रहे हैं। वे घास और पानी भी प्रसन्‍नतापूर्वक नहीं ग्रहण करते हैं। (12)
  • महाबाहो! कहते हैं, इन निर्मितों[2] के प्रकट होने पर प्राणियों के विनाश करने वाले दारुण भय की उपस्थिति होती है। (13)
  • केशव! हाथी, घोड़े तथा मनुष्‍य भोजन तो थोड़ा ही करते हैं; परंतु उनके पेट से मल अधिक निकलता देखा जाता है। (14)
  • मधुसूदन! दुर्योधन की समस्‍त सेनाओं में ये बातें पायी जाती है। मनीषी पुरुष इन्‍हें पराजय का लक्षण कहते हैं। 15)
  • श्रीकृष्‍ण! पाण्‍डवों के वाहन प्रसन्‍न बताये जाते हैं और मृग उनके दाहिने से जाते देखे जाते हैं; यह लक्षण उनकी विजय का सूचक है। (16)
  • केशव! सभी मृग दुर्योधन के बाँयें से निकलते हैं और उसे प्राय: ऐसी वाणी सुनायी देती हैं, जिसके बोलने वाले का शरीर नही दिखायी देता। यह उसकी पराजय का चिह्र है। (17)
  • ‘मोर’शुभ शकुन सूचित करने वाले मुर्गे, हंस, सारस, चातक तथा चकोरों के समुदाय पाण्‍डवों का अनुसरण करते हैं। (18)
  • इसी प्रकार गीध, कक, बक, श्‍येन (बाज), राक्षस,भेड़िये तथा मक्खियों के समूह कौरवों के पीछे दौड़ते हैं। (19)
  • दुर्योधन की सेनाओं में बजाने पर भी भेरियों के शब्‍द प्रकट नही होते हैं और पाण्‍डवों के डंके बिना बजाये ही बज उठते हैं।(20)
  • दुर्योधन की सेनाओं मे कुएँ आदि जलाशय गाय-बैलों के समान शब्‍द करते हैं। यह उसकी पराजय का लक्षण है। (21)
  • माधव! बादल आकाश से मांस और रक्‍त की वर्षा करते हैं। अन्‍तरिक्ष में चहारदिवारी,खाई, वप्र और सुन्‍दर फाटकों सहित सूर्ययुक्‍त गन्‍धर्वनगर प्रकट दिखायी देता है। वहाँ सूर्य को चारों ओर से घेरकर एक काला परिघ प्रकट होता है। (22-23)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. काला चिह्र
  2. उत्‍पातसूचक लक्षणों

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