नवाधिकशततम (109) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-22 का हिन्दी अनुवाद
संजय कहते हैं- राजन! युद्ध में इस प्रकार निर्भय से विचरत हुए अलम्बुष के पास हिडिम्बाकुमार घटोत्कच बड़े वेग से आ पहुँचा और उसे अपने तीखे बाणों द्वारा बींधने लगा। वे दोनों राक्षसों सिंह के समान पराक्रमी थे और इन्द्र तथा शम्बरासुर के समान नाना प्रकार की मायाओं का प्रयोग करते थे। उन दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। अलम्बुष ने अत्यन्त कुपित होकर घटोत्कच को घायल कर दिया। वे दोंनो राक्षस समाज के मुखिया थे। प्रभो! जैसे पूर्वकाल में श्रीराम और रावण का संग्राम हुआ था, उसी प्रकार उन दोनों में भी युद्ध हुआ। घटोत्कच बीस नाराचों द्वारा अलम्बुष की छाती में गहरी चोट पहुँचाकर बारंबार सिंह के समान गर्जना की।। राजन! इसी प्रकार अलम्बुष भी युद्ध दुर्मद घटोत्कच को बारंबार घायल करके समूचे आकाश को हर्ष पूर्वक गुंजाता हुआ सिंहनाद करता था। इस प्रकार अत्यन्त क्रोध में भरे हुए दोनों महाबली राक्षसराज परस्पर मायाओं का प्रयोग करते हुए समान रुप से युद्ध करने लगे। वे प्रतिदिन सैकड़ों मायाओं की सृष्टि करने वाले थे और दोनो ही माया युद्ध में कुशल थे। अत: एक दूसरे को मोहित करते हुए माया द्वारा ही युद्ध करने लगे। नरेश्वर! घटोत्कच युद्धस्थल में जो-जो माया दिखाता, उसे अलम्बुष अपनी माया द्वारा ही नष्ट कर देता था।। माया युद्ध विशारद राक्षसराज अलम्बुष को इस प्रकार युद्ध करते देख समस्त पाण्डव कुपित हो उठे थे। राजन! वे अत्यन्त उद्विग्न हुए भीमसेन आदि श्रेष्ठ और क्रोध में भर कर रथों द्वारा सब ओर से अलम्बुष पर टूट पड़े। माननीय नरेश! जैसे जलती हुई उल्काओं द्वारा चारों ओर से घेरकर हाथी पर प्रहार किया जाता हैं, उसी प्रकार रथसमूह के द्वारा अलम्बुष को कोष्ठ बद्ध करके वे सब लोग चारों ओर से उस पर बाणों की वर्षा करने लगे। उस समय अलम्बुष को अपने अस्त्रों की माया से उनके उस महान अस्त्र वेग को दबाकर रथसमूह के उस घेरे से मुक्त हो गया, मानों कोई गजराज दावानल के घेरे से बाहर हो गया हो।। उसने इन्द्र के वज्र की भाँति घोर टंकार करने वाले अपने भयंकर धनुष को तानकर भीमसेन को पच्चीस और उनके पुत्र घटोत्कच को पांच बाण मारे। आर्य! उसने युधिष्ठिर को तीन, सहदेव को सात, नकुल को तिहत्तर और द्रौपदी-पुत्रों को पांच-पांच बाणों से घायल करके घोर गर्जना की। तब भीमसेन ने नौं, सहदेव ने पांच और युधिष्ठिर ने तो बाणों से राक्षस अलम्बुष को घायल कर दिया। तत्पश्चात नकुल ने चौसठ और द्रौपदी कुमारों ने तीन-तीन बाणों से अलम्बुष को बींध डाला। तदनन्तर महाबली हिडिम्बाकुमार ने युद्धस्थल में उस राक्षस को पचास बाणों से घायल करके पुन: सत्तर बाणों द्वारा बींध डाला और बड़े जोर से गर्जना की। राजन! उसके महान सिंहनाद से वृक्षों, जलाशयों, पर्वतो और वनों सहित यह सारी पृथ्वी काँप उठी। उन महाधनुर्धर महारथियों द्वारा सब ओर से अत्यन्त घायल होकर बदले में अलम्बुष ने भी पांच-पांच बाणों से उन सबको वेध दिया। भरतश्रेष्ठ! उस युद्धस्थल में कुपित हुए राक्षस अलम्बुष को क्रोध में भरे हुए निशाचर घटोत्कच ने सात बाणों से घायल कर दिया। बलवान घटोत्कच द्वारा अत्यन्त क्षत-विक्षत होकर उस महाबली राक्षसराज ने तुरंत ही सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंखवाले बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। जैसे रोष में भरे हुए महाबली सर्प पर्वत के शिखर पर चढ़ जाते हैं उसी प्रकार अलम्बुष के वे झुकी गांठवाले बाण उस समय घटोत्कच के शरीर में घुस गया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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