महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 108 श्लोक 21-44

अष्‍टाधिकशततम (108) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: अष्‍टाधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-43 का हिन्दी अनुवाद

राजन! काले काजल के देर के समान वह राक्षस बहुत से बाणों द्वारा सब ओर से घायल होकर लोहू-लुहान हो लिये हुए पलाश के वृक्ष के समान सुशोभित होने लगा। भीमसेन के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा समरभूमि में घायल होकर और महात्‍मा पाण्‍डुकुमार भीम के द्वारा किये गये अपने भाई के वध का स्‍मरण करके उस राक्षस ने भंयकर रुप धारण कर लिया और भीमसेन से कहा-। ‘पार्थ! इस समय तुम रणक्षेत्र में डटे रहो और आज मेरा पराक्रम देखो। अर्जुन! मेरे बलवान भाई राक्षसराज बक को तुमने मार डाला था, वह सब कुछ मेरी आंखो की ओट में हुआ था मेरे सामने तुम कुछ नहीं कर सकते थे’।

भीमसेन से ऐसा कहकर वह राक्षस उसी समय अन्‍तर्धान हो गया और फिर उनके ऊपर बाणों की भारी वर्षा करने लगा।। राजन! उस समय समरागंण में राक्षस के अद्श्‍य हो जाने पर भीमसेन ने झुकी हुई गौंठ वाले बाणों द्वारा वहाँ के समूचे आकाश को भर दिया। भीमसेन के बाणों की मार खाकर अलम्‍बुष पलक मारते-मारते अपने रथ पर आ बैठा। वह क्षुद्र निशाचर कभी तो धरती पर जाता और कभी सहसा आकाश में पहुँच जाता था। उसने वहाँ छोटे-बड़े बहुत-से रुप धारण किये। वह मेघ के समान गर्जना करता हुआ कभी बहुत छोटा हो जाता और कभी महान, कभी सूक्ष्‍मरुप धारण करता और कभी स्‍थूल बन जाता था। इसी प्रकार वहाँ सब ओर घूम-घूमकर वह भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार की बोलियां भी बोलता था। उस समय भीमसेन पर आकाश से बाणों की सहस्‍त्रों धाराएं गिरने लगीं। शक्ति, कणप, प्रास, शूल, पट्टिश, तोमर, शतघ्‍नी, परिघ, भिन्दिपाल, फरसे, शिलाएं, खंग, लोहे की गोलियां, ॠष्टि और वज्र आदि अस्त्र-शस्त्रों की भारी वर्षा होने लगी। राक्षस-द्वारा की हुई उस भयंकर शस्त्र वर्षा ने युद्ध के मुहाने पर पाण्‍डुपुत्र भीम के बहुत से सैनिकों का संहार कर डाला।

राजन! राक्षस अलम्‍बुष ने युद्धस्‍थल में पाण्‍डव सेना के बहुत-से हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिको का बारंबार संहार किया। उसके बाणों से छिन्‍न-भिन्‍न होकर बहुतेरे रथी रथों से गिर पड़े। उसने युद्धस्‍थल में खून की नदी बहा दी, जिसमें रक्‍त ही पानी के समान जान पड़ते थे, हाथियों के शरीर उस नदी में ग्राह के समान सब ओर छा रहे थे, छत्र हंसो का भ्रम उत्‍पन्‍न करते थे, वहाँ कीच जम गयी थी, कटी हुई भुजाएं सर्पों के समान सब ओर व्‍याप्‍त हो रही थीं। राजन! पाञ्चाल और सृंजयों को बहाती हुई वह नदी राक्षसों से घिरी हुई थीं। महाराज! उस निशाचर को समरागंण में इस प्रकार निर्भय सा विचरते देख पाण्‍डव अत्‍यन्‍त उद्विग्‍न हो उसका पराक्रम देखने लगे। उस समय आपके सैनिकों को महान हर्ष हो रहा था। वहाँ रणवाद्यों का रोमांञ्चकारी एवं भंयकर शब्‍द बड़े जोर-जोर से होने लगा।

आपकी सेना का वह घोर हषर्नाद सुनकर पाण्‍डुकुमार भीमसेन नहीं सहन कर सके। ठीक उसी तरह जैसे हाथी ताल ठोंकने का शब्‍द नहीं सह सकता। तब वायुकुमार भीमसेन ने जलाने का उद्यत हुए अग्नि के समान क्रोध से लाल आंखे करके स्‍वाह नामक अस्त्र का संघान किया, मानो साक्षात त्‍वष्‍टा ही प्रयोग कर रहे हो। उससे चारों ओर सहस्रों बाण प्रकट होने लगे। उस बाणों द्वारा आपकी सेना का संहार होने लगा। युद्धस्‍थल में भीमसेन द्वारा चलाये हुए उस अस्त्र ने राक्षस की महामाया को नष्‍ट करके उसे गहरी पीड़ा दी। बारंबार भीमसेन की मार खाकर राक्षसराज अलम्‍बुष रणक्षेत्र में उसका सामना छोड़कर द्रोणाचार्य की सेना में भाग गया। राजन! महामना भीमसेन के द्वारा राक्षसराज अलम्‍बुष के पराजित हो जाने पर पाण्‍डव-सैनिकों ने सम्‍पूर्ण दिशाओं को अपने सिंहनादों से निनादित कर दिया। उन्‍होंने अत्‍यन्‍त हर्ष में भरकर महाबली भीमसेन की उसी प्रकार भूरि-भूरि प्रशंसा की, जैसे मरुद्रणों ने समरागंण में प्रह्मद को जीतकर आये हुए देवराज इन्‍द्र की स्‍तुति की थी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तगर्त जयद्रथपर्व में अलम्‍बुष की पराजय विषयक एक सौ आठवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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