एकोनत्रिशदधिकशततम (129) अध्याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)
महाभारत: अनुशासन पर्व: एकोनत्रिशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
लोमश जी ने कहा- जो स्वयं विवाह न करके परायी स्त्रियों में आसक्त हैं, उनके यहाँ श्राद्ध काल आने पर पितर निराश हो जाते हैं। जो परायी स्त्री मे आसक्त है, जो वन्ध्या स्त्री का सेवन करता है तथा जो ब्राह्मण का धन हर लेता है- ये तीनों समान दोष के भागी होते हैं। ये पितरों की दृष्टि में बात करने योग्य नहीं रह जाते हैं, इसमें संशय नहीं है और देवता तथा पितर उसके हविष्य को आदर नहीं देते है। अत: अपना हित चाहने वाले पुरुषों को परायी स्त्री और वन्ध्या स्त्री का त्याग कर देना चाहिये तथा ब्राह्मण के धन का अपहरण नहीं करना चाहिये। अब दूसरी धर्मयुक्त गोपनीय रहस्य की बात सुनो। सदा श्रद्धापूर्वक गुरुजनों की आज्ञा का पालन करना चाहिये। प्रत्येक मास की द्वादशी और पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को घृत सहित चावलों का दान करे। इसका जो पुण्य है, उसे सुनो। उस दान से चन्द्रमा तथा महोदधि समुद्र की वृद्धि होती है और उस दाता को इन्द्र अश्वमेध यज्ञ का चतुर्थांश फल देते हैं। उस दान से मनुष्य तेजस्वी और बलवान होता है और भगवान सोम प्रसन्न होकर उसे अभीष्ट कामनाएं प्रदान करते हैं। अब दूसरे महान फलदायक रहस्ययुक्त धर्म का वर्णन सुनो। जो इस कलियुग को पाकर मनुष्यों के लिये सुख की प्राप्ति कराने वाला है। जो मनुष्य सवेरे उठकर स्नान करके पवित्र सफेद वस्त्र से युक्त हो मन को एकाग्र करके ब्राह्मणों को तिलपात्र का दान करता है ओर पितरों के लिए मधुयुक्त तिलोदक, दीपक एवं खिचड़ी देता है, उसको जो फल मिलता है, उसका वर्णन सुनो। भगवान इन्द्र ने तिल के दान का फल इस प्रकार बतलाया है- जो सदा गोदान और भूमिदान करता है तथा जो बहुत-सी दक्षिणा वाले अग्निष्टोम यज्ञ का अनुष्ठान करता है, उसके इन पुण्य कर्मों के समान ही देवता लोग तिलपात्र के दान को भी मानते हैं। पितर लोग सदा श्राद्ध में तिल सहित जल का दान करना अक्षय मानते हैं। दीपदान और खिचड़ी के दान से उसके पितामह संतुष्ट होते हैं। यह पुरातन धर्म-रहस्य ऋषियों द्वारा देखा गया है। स्वर्गलोक और पितृलोक में देवताओं तथा पितरों ने इसका समादर किया है। इस प्रकार इस धर्म का मैंने वर्णन किया है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासन पर्व के अंतर्गत दानधर्म पर्व में लोमशवर्णित धर्म का रहस्य विषयक एक सौ उन्तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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