महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 149 श्लोक 1-23

एकोनपंचादधिकशततम (149) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनपंचादधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र के युक्तिसंगत वचन-पाण्डवों को आधा राज्य देने के लिये आदेश
  • भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन! गान्धारी के ऐसा कहने पर राजा धृतराष्‍ट्र ने समस्‍त राजाओं के बीच दुर्योधन से इस प्रकार कहा- (1)
  • बेटा दुर्योधन! मेरी यह बात सुन। तेरा कल्‍याण हो। यदि तेरे मन में पिता के लिये कुछ भी गौरव है तो तुझसे जो कुछ कहूँ, उसका पालन कर। (2)
  • सबसे पहले प्रजापति सोम हुए, जो कौरववंश की वृद्धि के कारण हैं। सोम से छठी पीढी में नहुष पुत्र ययाति का जन्‍म हुआ। (3)
  • ययाति के पाँच पुत्र हुए, जो सब-के-सब श्रेष्‍ठ राजर्षि थे। उनमें महातेजस्‍वी एवं शक्तिशाली ज्‍येष्‍ठ पुत्र यदु थे और सबसे छोटे पुत्र का नाम पुरु हुआ, जिन्‍होंने हमारे इस वंश की वृद्धि की है। वे वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा के गर्भ से उत्‍पन्‍न हुए थे। (4-5)
  • 'भरतश्रेष्‍ठ! यदु देवयानी के पुत्र थे। तात! वे अमित तेजस्‍वी शुक्राचार्य के दौहित्र लगते थे। (6)
  • वे बलवान, उत्‍तम पराक्रम से सम्‍पन्‍न एवं यादवों के वंश प्रर्वतक हुए थे। उनकी बुद्धि बड़ी मन्‍द थी और उन्‍होंने घमंड में आकर समस्‍त क्षत्रियों का अपमान किया था। (7)
  • ’बल के घमंड से वे इतने मोहित हो रहे थे कि पिता के आदेश पर चलते ही नहीं थे किसी से पराजित न होने वाले यदु अपने भाइयों और पिता का भी अपमान करते थे। (8)
  • चारों समुद्र जिसके अन्‍त में है, उस भूमण्‍डल में यदु ही सबसे अधिक बलवान थे। वे समस्‍त राजाओं को वश में करके हस्तिनापुर में निवास करते थे। (9)
  • ’गान्‍धारीपुत्र! यदु के पिता नहुषनन्‍दन ययाति ने अत्‍यन्‍त कुपित होकर यदु को शाप दे दिया और उन्‍हें राज्‍य से भी उतार दिया। (10)
  • अपने बल का घमंड रखने वाले जिन-जिन भाइयों ने यदु का अनुसरण किया, ययाति ने कुपित होकर अपने उन पुत्रों को भी शाप दे दिया। (11)
  • तदनन्तर अपने अधीन रहने वाले आज्ञापालक छोटे पुत्र पुरु को नृपश्रेष्‍ठ ययाति ने राज्‍य पर बिठाया। (12)
  • इस प्रकार यह सिद्ध है कि ज्‍येष्‍ठ पुत्र भी यदि अहंकारी हो तो उसे राज्‍य की प्राप्ति नहीं होती और छोटे पुत्र भी वृद्ध पुरुषों की सेवा करने से राज्‍य पाने के अधिकारी हो जाते हैं। (13)
  • इसी प्रकार मेरे पिता के पितामह राजा प्रतीप सब धर्मों के ज्ञाता एवं तीनों लोकों में विख्‍यात थे। (14)
  • धर्मपूर्वक राज्‍य का शासन करते हुए नृपप्रवर प्रतीप के तीन पुत्र उत्‍पन्‍न हुए, जो देवताओं के समान तेजस्‍वी और यशस्‍वी थे। (15)
  • तात! उन तीनों में सबसे श्रेष्‍ठ थे देवापि! उनके बाद वाले राजकुमार का नाम वाह्रीक था तथा प्रतीप के तीसरे पुत्र मेरे धैर्यवान पितामह शान्‍तनु थे। (16)
  • ’नृपश्रेष्‍ठ देवापि महान तेजस्‍वी होते हुए भी चर्मरोग से पीड़ित थे। वे धार्मिक, सत्‍यवादी, पिता की सेवा में तत्‍पर, साधु पुरुषों द्वारा सम्‍मानित तथा नगर एवं जनपद- निवासियों के लिये आदरणीय थे। देवापि ने बालकों से लेकर वृद्धों तक सभी के हृदय में अपना स्‍थान बना लिया था। (17-18)
  • वे उदार, सत्‍यप्रतिज्ञ और समस्‍त प्राणियों के हित में तत्‍पर रहने वाले थे। पिता तथा ब्राह्रमणों के आदेश के अनुसार चलते थे।(19)
  • वे बाह्लीक तथा महात्‍मा शान्तनु के प्रिय बन्‍धु थे। परस्‍पर संगठित रहने वाले उन तीनों महामना बन्धुओं का परस्‍पर अच्‍छे भाई का-सा स्‍नेहपूर्ण बर्ताव था। (20)
  • तदनन्‍तर कुछ काल बीतने पर बूढ़े नृपश्रेष्‍ठ प्रतीप ने शास्‍त्रीय विधि के अनुसार राज्‍याभिषेक के लिये सामग्रियों का संग्रह कराया। (21)
  • उन्‍होंने देवापि के मंगल के लिये सभी आवश्‍यक कृत्‍य सम्‍पन्‍न कराये; परंतु उस समय सब ब्राह्मणों तथा वृद्ध पुरुषों ने नगर और जनपद के लोगों के साथ आकर देवापि का राज्‍याभिषेक रोक दिया। (22)
  • किंतु राज्‍याभिषेक रोकने की बात सुनकर राजा प्रतीप का गला भर आया और वे अपने पुत्र के लिए शोक करने लगे। (23)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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