महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 149 श्लोक 24-36

एकोनपंचादधिकशततम (149) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनपंचादधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद
  • इस प्रकार यद्यपि देवापि उदार, धर्मज्ञ, सत्‍यप्रतिज्ञ तथा प्रजाओं के प्रिय थे, तथापि पूर्वोक्‍त चर्मरोग के कारण दूषित मान लिये गये। (24)
  • जो किसी अंग से हीन हो उस राजा का देवता लोग अभिनन्‍दन नहीं करते हैं; इसीलिये उन श्रेष्‍ठ ब्राह्मणों ने नृप-प्रवर प्रतीप को देवापि का अभिषेक करने से मना कर दिया था। (25)
  • इससे राजा को बड़ा कष्‍ट हुआ। वे पुत्र के लिये शोकमग्‍न हो गये। राजा को रोका गया देखकर देवापि वन में चले गये। (26)
  • बाह्लीक परम समृद्धिशाली राज्‍य तथा पिता और भाइयों को छोड़कर मामा के घर चले गये। (27)
  • राजन! तदनन्‍तर पिता की मृत्‍यु होने के पश्‍चात बाह्लीक की आज्ञा लेकर लोक विख्‍यात राजा शान्तनु ने राज्‍य का शासन किया। (28)
  • भारत! इसी प्रकार मैं भी अंगहीन था; इसलिये ज्‍येष्‍ठ होने पर भी बुद्धिमान पाण्‍डु एवं प्रजाजनों के द्वारा खूब सोच विचार कर राज्‍य से वंचित कर दिया गया। (29)
  • पाण्‍डु ने अवस्‍था में छोटे होने पर भी राज्‍य प्राप्‍त किया और वे एक अच्छे राजा बनकर रहे हैं। शत्रुदमन दुर्योधन! पाण्‍डु की मृत्‍यु के पश्‍चात उनके पुत्रों का ही यह राज्‍य है। (30)
  • मैं तो राज्‍य का अधिकारी था ही नहीं, फिर तू कैसे राज्‍य लेना चाहता है? जो राजा का पुत्र नहीं है, वह उसके राज्‍य का स्‍वामी नहीं हो सकता। तू पराये धन का अपहरण करना चाहता है। (31)
  • महात्‍मा युधिष्ठिर राजा के पुत्र हैं, अत: न्‍यायत: प्राप्‍त हुए इस राज्‍य पर उन्‍हीं का अधिकार है। वे ही इस कौरव-कुल का भरण-पोषण करने वाले, स्‍वामी तथा इस राज्‍य के शासक हैं। उनका प्रभाव महान है। (32)
  • वे सत्‍य‍प्रतिज्ञ और प्रमाद‍ रहित हैं। शास्‍त्र की आज्ञा के अनुसार चलते और भाई-बंधुओं पर सद्भाव रखते हैं। युधिष्ठिर पर प्रजावर्ग का विशेष प्रेम है। वे अपने सुहृदों पर कृपा करने वाले, जितेन्द्रिय तथा सज्‍जनों का पालन पोषण करने वाले हैं। (33)
  • क्षमा, सहनशीलता, इन्द्रिसंयम, सरलता, सत्‍य-परायणता, शास्‍त्रज्ञान, प्रमादशून्‍यता, समस्‍त प्राणियों पर दयाभाव तथा गुरुजनों के अनुशासन में रहना आदि समस्‍त राजोचित गुण युधिष्ठिर में विद्यमान हैं। (34)
  • तू राजा का पुत्र नहीं है। तेरा बर्ताव भी दुष्‍टों के समान है। तू लोभी तो है ही, बन्‍धु-बांधवों के प्रति सदा पापपूर्ण है। तू कैसे इसका अपहरण कर सकेगा? (35)
  • नरेन्‍द्र! तू मोह छोड़कर वाहनों और अन्‍यान्‍य सामग्रियों सहित कम से कम आधा राज्‍य पाण्‍डवों को दे दे। सभी अपने छोटे भाइयों के साथ तेरा जीवन बचा रह सकता है। (36)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्‍तर्गत भगवद्यानपर्व में धृतराष्‍ट्रवाक्‍यविषयक एक सौ उनचासवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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