महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 106 श्लोक 1-24

षडधिकशततम (106) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: षडधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद



द्रोण और उनकी सेना के साथ पाण्‍डव-सेना का द्वन्‍द्व युद्ध तथा द्रोणाचार्य के साथ युद्ध करते समय रथ-भंग हो जाने पर यधिष्‍ठर का पलायन

धृतराष्‍ट्र ने पूछा- संजय! जब अर्जुन सिन्‍धुराज जयद्रथ के समीप पहुँच गये, तब द्रोणाचार्य द्वारा रोके हुए पाञ्चाल सैनिकों ने कौरवों के साथ क्‍या किया। संजय कहते हैं- महाराज! उस दिन अपराह्ण काल में, जब रोमाञ्चकारी युद्ध चल रहा था, पाञ्चालों और कौरवों में द्रोणाचार्य को दांव पर रखकर द्यूत सा होने लगा। माननीय नरेश! पाञ्चाल सैनिक द्रोण को मार डालने की इच्‍छा से प्रसन्‍नचित्त होकर गर्जना करते हुए उनके ऊपर बाणों की वर्षा करने लगे। तदनन्‍तर उन पाञ्चालों और कौरवों में घोर देवासुर संग्राम के समान अद्भुत एवं भयंकर युद्ध होने लगे। समस्‍त पाञ्चाल पाण्‍डवों के साथ द्रोणाचार्य के रथ के समीप जाकर उनकी सेना के व्‍यूह का भेदन करने की इच्‍छा से बड़े-बड़े अस्त्रों का प्रदर्शन करने लगे। वे पाञ्चाल रथी रथ पर बैठकर मध्‍यम वेग का आश्रय ले पृथ्‍वी को कंपाते हुए द्रोणाचार्य के रथ के अत्‍यन्‍त निकट जाकर उनको सामना करने लगे। केकय देश के महारथी वीर बृहत्क्षत्र ने महेन्‍द्र के वज्र के समान तीखे बाणों की वर्षा करते हुए वहाँ द्रोणाचार्य पर धावा किया। उस समय महायशम्‍वी क्षेमधूर्ति सैकड़ों और हजारों तीखे बाण छोड़ते हुए शीघ्रतापूर्वक बृहत्‍क्षत्र का सामना करने के लिये गये।

अत्‍यन्त बल से विख्‍यात चेदिराज धृष्‍टकेतु ने भी बड़ी उतावली के साथ द्रोणाचार्य पर धावा किया, मानो देवराज इन्‍द्र ने शम्‍बरासुर पर चढ़ाई की हो। मुंह बाये हुए काल के समान सहसा आक्रमण करने वाले धृष्‍टकेतु का सामना करने के लिये महाधनुर्धर वीरधन्वा बड़े वेग से आ पहुँचे। तदनन्‍तर पराक्रमी द्रोणाचार्य ने विजय की इच्‍छा से सेना सहित खड़े हुए महाराज युधिष्ठिर को आगे बढ़ने से रोक दिया। प्रभो! आपके पराक्रमी पुत्र विकर्ण ने वहाँ आते हुए पराक्रम शाली युद्ध कुशल नकुल का सामना किया। शत्रुसूदन दुर्मुख ने अपने सामने आते हुए सहदेव पर कई हजार बाणों की वर्षा की। व्‍याघ्रदत्त ने अत्‍यन्‍त तेज किये हुए तीखे बाणों द्वारा बारंबार शत्रुसेना को कम्पित करते हुए वहाँ पुरुष सिंह सात्‍यकि को आगे बढ़ने से रोका। मनुष्‍यों में व्‍याघ्र के समान पराक्रमी तथा श्रेष्‍ठ रथी द्रौपदी के पांचों पुत्र कुपित होकर शत्रुओं पर उत्‍तम बाणों की वर्षा कर रहे थे। सोमदत्‍त कुमार शल ने उन सबको रोक दिया। भयंकर रुपधारी एवं भयानक महारथी ऋष्‍यश्रृगं कुमार अलम्‍बुष ने उस समय क्रोध में भरकर आते हुए भीमसेन को रोका। राजन! पूर्व काल में जिस प्रकार श्रीराम और रावण का संग्राम हुआ था, उसी प्रकार उस रणक्षेत्र में मानव भीमसेन तथा राक्षस अलम्‍बुष का युद्ध हुआ।

भरतभूषण! युधिष्ठिर ने झुकी हुई गांठवाले नब्‍बे बाणों से द्रोणाचार्य के सम्‍पूर्ण मर्म स्‍थानों में आघात किया। भरतश्रेष्‍ठ यशस्‍वी कुन्‍ती कुमार के क्रोध दिलाने पर द्रोणाचार्य ने उनकी छाती में पच्चीस बाण मारे। फिर द्रोण ने सम्‍पूर्ण धनुर्धरों को देखते-देखते घोड़े सारथि और ध्‍वज सहित युधिष्ठिर को बीस बाण मारे। धर्मात्‍मा पाण्‍डुनन्‍दन युधिष्ठिर ने अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए द्रोणाचार्य के छोड़े हुए उन बाणों को अपनी बाण-वर्षा द्वारा रोक दिया। तब धनुर्धर द्रोणाचार्य उस युद्ध स्‍थल में महात्‍मा धर्मराज युधिष्ठिर पर अत्‍यन्‍त कुपित हो उठे। उन्‍होंने समरागंण में युधिष्ठिर के धनुष को काट दिया। धनुष काट देने के पश्रात् महारथी द्रोणाचार्य बड़ी उतावली के साथ कई हजार बाणों की वर्षा करके उन्‍हें सब ओर से ढक लिया। राजा युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य के बाणों से अदृश्‍य हुआ देख समस्‍त प्राणियों ने उन्‍हें मारा गया ही मान लिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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