पंचाधिकशततम (105) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
महाभारत: द्रोण पर्व: पंचाधिकशततम अध्याय: श्लोक 20-38 का हिन्दी अनुवाद
सिन्धुराज जयद्रथ की ध्वजा के अग्रभाग में उज्ज्वल सूर्य के समान श्वेत कान्तिमान और सोने की जाली से विभूषित चांदी का बना हुआ वराहचिह्न अत्यन्त सुशोभित हो रहा था। जैसे पूर्वकाल में देवासुर-संग्राम में पूषा शोभा पाते थे, उसी प्रकार उस रजत निर्मित ध्वज से जयद्रथ की शोभा हो रही थी। सदा यज्ञ में लगे रहने वाले बुद्धिमान भूरिश्रवा के रथ में यूप का चिह्न बना था। वह ध्वज सूर्य के समान प्रकाशित होता था और उसमें चन्द्रमा का चिह्न भी दृष्टि गोचर होता था। राजन! जैसे यज्ञों में श्रेष्ठ राजसूय में ऊँचा यूप सुशोभित होता है, भूरिश्रवा का वह सुवर्णमय यूप वैसे ही शोभा पा रहा था। जैसे श्वेत वर्ण का महान ऐरावत हाथी देवराज की सेना को सुशोभित करता है, उसी प्रकार राजा दुर्योधन का सुवर्ण मण्डित ध्वज गजराज के चिह्न से उपलक्षित होता था। प्रजानाथ! वह विचित्र ध्वज दुर्योधन के उत्तम रथ पर सैकड़ों क्षुद्रघंटिकाओं की ध्वनि से शोभायमान था। उस महान ध्वज से युद्ध स्थल में आपके पुत्र कुरुश्रेष्ठ दुर्योधन की उस समय बड़ी शोभा हो रही थी। ये नौ उत्तम ध्वज आपकी सेना मे बहुत उंचे थे और प्रलय काल के सूर्य के समान अपना प्रकाश फैलाये हुए आपकी सेना को उद्भासित कर रहे थे। दसवां ध्वज एकमात्र अर्जुन का ही था, जो विशाल वानरचिह्न से सुशोभित था। उससे अर्जुन उसी प्रकार देदीप्यमान हो रहे थे, जैसे अग्नि से हिमालय पर्वत उद्भासित होता है। तदनन्तर शत्रुओं को संताप देने वाले उन सब महारथियों ने अर्जुन को मारने के लिये तुरंत ही विचित्र, चमकीले और विशाल धनुष हाथ में ले लिये। राजन! उसी प्रकार दिव्य कर्म करने वाले शत्रु नाशन पार्थ ने भी आपकी कुमन्त्रणा के फलस्वरुप अपने गाण्डीव धनुष को खींचा। महाराज! आपके अपराध से उस युद्धस्थल में अनेक दिशाओं से आमन्त्रित होकर आये हुए बहुत से राजा अपने घोड़ों, रथों और हाथियों सहित मारे गये हैं। उस समय एक दूसरे को लक्ष्य करके गर्जना करने वाले दुर्योधन आदि महारथियों तथा पाण्डव श्रेष्ठ अर्जुन में परस्पर आघात प्रतिघात होने लगा। वहाँ श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं, उन कुन्तीकुमार अर्जुन ने यह अत्यन्त अद्भुत पराक्रम किया कि अकेले ही बहुतों के साथ निर्भय होकर युद्ध आरम्भ कर दिया। उन पर विजय पाने की इच्छा रखकर जयद्रथ के वध की अभिलाषा से गाण्डीव धनुष को खींचते हुए पुरुष सिंह महाबाहु अर्जुन की बड़ी शोभा हो रही थी। उस समय शत्रुओं को संताप देने वाले नरव्याघ्र अर्जुन ने अपने छोड़े हुए सहस्त्रों बाणों द्वारा आपके योद्धाओं को अदृश्य कर दिया। तब उन सभी पुरुषसिंह महारथियों ने भी समरागंण में सब ओर से बाणसमूहों की वर्षा करके अर्जुन को अदृश्य कर दिया। जब कुरुश्रेष्ठ अर्जुन उन पुरुषसिंहों द्वारा घेर लिये गये, तब उस सेना में महान कोलाहल प्रकट हुआ। अ इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत जयद्रथवध पर्व में ध्वज वर्णन विषयक एक सौ पांचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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