महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 12 श्लोक 1-16

द्वादश (12) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद


दुर्योधन का वर माँगना और द्रोणाचार्य का युधिष्ठिर को अर्जुन की अनुपस्थिति में जीवित पकड़ लाने की प्रतिज्ञा करना
  • संजय ने कहा– महाराज! मैं बड़े दु:ख के साथ आप से उन सब घटनाओं का वर्णन करूँगा। द्रोणाचार्य किस प्रकार गिरे हैं और पाण्‍डवों तथा सृंजयों ने कैसे उनका वध किया है? इन सब बातों को मैंने प्रत्‍यक्ष देखा था। (1)
  • सेनापति का पद प्राप्‍त करके महारथी द्रोणाचार्य ने सारी सेना के बीच में आपके पुत्र दुर्योधन से इस प्रकार कहा। (2)
  • राजन! तुमने कौरव श्रेष्‍ठ गंगापुत्र भीष्‍म के बाद जो आज मुझे सेनापति बनाया है, भरतनन्‍दन! इस कार्य के अनुरूप कोई फल मुझसे प्राप्‍त करो। आज तुम्‍हारा कौन सा मनोरथ पूर्ण करूँ? तुम्‍हें जिस वस्‍तु की इच्‍छा हो, उसे ही माँग लो। (3-4)
  • तब राजा दुर्योधन ने कर्ण, दु:शासन आदि के साथ सलाह करके विजयी वीरों में श्रेष्‍ठ एवं दुर्जय आचार्य द्रोण से इस प्रकार कहा। (5)
  • आचार्य! यदि आप मुझे वर दे रहे हैं तो रथियों में श्रेष्‍ठ युधिष्ठिर को जीवित पकड़ कर यहाँ मेरे पास ले आइये। (6)
  • आपके पुत्र की वह बात सुनकर कुरुकुल के आचार्य द्रोण सारी सेना को प्रसन्‍न करते हुए इस प्रकार बोले। (7)
  • राजन! कुन्‍तीकुमार युधिष्ठिर धन्‍य हैं, जिन्‍हें तुम जीवित पकड़ना चाहते हो। उन दुर्धर्ष वीर के वध के लिये आज तुम मुझसे याचना नहीं कर रहे हो। (8)
  • पुरुषसिंह! तुम्‍हें उनके वध की इच्‍छा क्‍यों नहीं हो रहीं है? दुर्योधन! तुम मेरे द्वारा निश्चित रूप से युधिष्ठिर का वध कराना क्‍यों नहीं चाहते हो? (9)
  • अथवा इसका कारण यह तो नहीं है कि धर्मराज युधिष्ठिर से द्वेष रखने वाला इस संसार में कोई है ही नहीं। इसीलिये तुम उन्‍हें जीवित देखना और अपने कुल की रक्षा करना चाहते हो। (10)
  • अथवा भरतश्रेष्‍ठ! तुम युद्ध में पाण्‍डवों को जीत कर इस समय उनका राज्‍य वापस दे सुन्‍दर भ्रातृभाव का आदर्श उपस्थित करना चाहते हो। (11)
  • कुन्‍तीपुत्र राजा युधिष्ठिर धन्‍य हैं। उन बुद्धिमान नरेश का जन्‍म बहुत ही उत्‍तम है और वे जो अजातशत्रु कहलाते हैं, वह भी ठीक है; क्‍योंकि तुम भी उन पर स्‍नेह रखते हो'। (12)
  • भारत! द्रोणाचार्य के ऐसा कहने पर तुम्‍हारे पुत्र के मन का भाव जो सदा उसके हृदय में बना रहता था, सहसा प्रकट हो गया। (13)
  • [[बृहस्पति] के समान बुद्धिमान पुरुष भी अपने आकार को छिपा नहीं सकते। राजन! इसीलिये आपका पुत्र अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न होकर इस प्रकार बोला। (14)
  • आचार्य! युद्ध के मैदान में कुन्‍तीपुत्र युधिष्ठिर के मारे जाने से मेरी विजय नहीं हो सकती; क्‍योंकि युधिष्ठिर का वध होने पर कुन्‍ती के पुत्र हम सब लोगों को अवश्‍य ही मार डालेंगे। (15)
  • सम्‍पूर्ण देवता भी समस्‍त पाण्‍डवों को रणक्षेत्र में नहीं मार सकते। यदि सारे पाण्‍डव अपने पुत्रों सहित युद्ध में मार डाले जायँगे तो भी पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्‍ण सम्‍पूर्ण नरेश मण्‍डल को अपने वश में करके समुद्र और वनों सहित इस सारी समृद्धिशालिनी वसुधा को जीतकर द्रौपदी अथवा कुन्‍ती को दे डालेंगे। अथवा पाण्‍डवों में से जो भी शेष रह जायगा, वही हम लोगों को शेष नहीं रहने देगा। (16)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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