|
महाभारत: द्रोण पर्व: दशम अध्याय: श्लोक 1-26 का हिन्दी अनुवाद
- राजा धृतराष्ट्र का शोक से व्याकुल होना और संजय से युद्ध विषयक प्रश्न
- वैशम्पायन जी कहते हैं– जनमेजय! सूतपुत्र संजय से इस प्रकार प्रश्न करते-करते हार्दिक शोक से अत्यन्त पीड़ित हो अपने पुत्रों की विजय की आशा टूट जाने के कारण राजा धृतराष्ट्र अचेत से होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। (1)
- उस समय अचेत पड़े हुए राजा धृतराष्ट्र को उनकी दासियाँ पंखा झलने लगीं और उनके ऊपर परम सुगन्धित एवं अत्यन्त शीतल जल छिड़कने लगी। (2)
- महाराज को गिरा देख धृतराष्ट्र की बहुत-सी स्त्रियाँ उन्हें चारों ओर से घेरकर बैठ गयीं और उन्हें हाथों से सहलाने लगीं। (3)
- फिर उन सुमुखी स्त्रियों ने राजा को धीरे-धीरे धरती से उठाकर सिंहासन पर बिठाया। उस समय उनके नेत्रों से आँसू झर रह थे और कण्ठ गद्गद हो रहे थे। (4)
- सिंहासन पर पहुँचकर भी राजा धृतराष्ट्र मूर्छा से पीड़ित हो निश्चेष्ट हो गये। उस समय सब ओर से उनके ऊपर व्यजन डुलाया जा रहा था। (5)
- फिर धीरे-धीरे होश में आने पर काँपते हुए राजा धृतराष्ट्र ने पुन: सूत जातीय संजय से युद्ध का यथावत समाचार पूछा। (6)
- धृतराष्ट्र बोले– जो उगते सूर्य की भाँति अपनी प्रभा से अन्धकार दूर कर देते हैं, उन अजातशत्रु युधिष्ठिर को द्रोण के समीप आने से किसने रोका था? (7)
- जो मद की धारा बहाने वाले, हथिनी के साथ समागम के समय आये हुए विपक्षी हाथी पर आक्रमण करने वाले तथा गजयूथपतियों के लिये अजेय मतवाले गजराज के समान वेगशाली और पराक्रमी हैं, कौरवों के प्रति जिनका क्रोध बढ़ा हुआ है, जिन पुरुषप्रवर वीर ने रणक्षेत्र में बहुत से वीरों का संहार किया हैं, जो महापराक्रमी, धैर्यवान एवं सत्यप्रतिज्ञ हैं और अपनी भयंकर दृष्टि से अकेले ही दुर्योधन की सम्पूर्ण सेना को भस्म कर सकते हैं, जो क्रोध भरी दृष्टि से ही शत्रु का संहार करने में समर्थ हैं, विजय के लिये प्रयत्नशील, अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले, जितेन्द्रिय तथा लोक में विशेष सम्मानित हैं, उस प्रसन्नवदन धनुर्धर युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य के सामने आते देख मेरे पक्ष के किन शूरवीरों ने रोका था? (8-11)
- जो धर्म से कभी विचलित नहीं होते हैं, उन महाधनुर्धर दुर्धर्ष वीर पुरुष सिंह कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर पर मेरे किन योद्धाओं ने आक्रमण किया था? (12)
- जिन्होंने वेग से ही पहुँचकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण किया था, जो शत्रु के समक्ष महान पराक्रम प्रकट करते हैं, जो महाबली, महाकाय और महान उत्साही हैं तथा जिनमें दस हजार हाथियों के समान बल है, उन भीमसेन को आते देख किन वीरों ने रोका था? (13-14)
- जो मेघ के समान श्यामवर्ण वाले परम पराक्रमी महारथी अर्जुन विद्युत की उत्पत्ति करते हुए बादलों के समान भयंकर वज्रास्त्र का प्रयोग करते हैं, जो जल की वर्षा करने वाले इन्द्र के समान बाणसमूहों की वृष्टि करते हैं तथा जो अपने धनुष की टंकार और रथ के पहिये की घरघराहट से सम्पूर्ण दिशाओं को शब्दायमान कर देते हैं, वे स्वयं भयंकर मेघ स्वरूप जान पड़ते हैं। धनुष ही उनके समीप विधुत्प्रभा के समान प्रकाशित होता है। रथियों की सेना उनकी फैली हुई घटाएँ जान पड़ती हैं। रथ के पहियों की घरघराहट मेघ-गर्जना के समान प्रतीत होती है। उनके बाणों की सनसनाहट वर्षा के शब्द की भाँति अत्यन्त मनोहर लगती है। क्रोधरूपी वायु उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। वे मनोरथ की भाँति शीघ्रगामी और विपक्षियों के मर्मस्थलों को विदीर्ण कर डालने वाले हैं। बाण धारण करके वे बड़े भयानक प्रतीत होते और रक्तरूपी जल से सम्पूर्ण दिशाओं को आप्लावित करते हुए मनुष्यों की लाशों से धरती को पाट देते हैं। (15-18)
|
|