महाभारत विराट पर्व अध्याय 44 श्लोक 1-14

चतुश्चत्वारिंश (44) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: चतुश्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद


अर्जुन का उत्तर कुमार से अपना और अपने भाइयों का यथार्थ परिचय देना

उत्तर ने पूछा - बृहन्नले! रण में फुर्ती दिखाने वाले जिन महात्मा कुन्ती पुत्रों के ये सुवर्ण भूषित सुन्दर आयुध इतने प्रकाशित हो रहे हैं, वे पृथा पुत्र अर्जुन, कुनन्दन युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव और पाण्डु पुत्र भीमसेन अब कहाँ हैं ?। सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाले वे सभी महात्मा जूए द्वारा अपना राज्य हारकर कहाँ गये ? जिससे कहीं किसी प्रकार भी उनके विषय में कुछ सुनने में नहीं आता?। पाञ्चाल देश की राजकुमारी द्रौपदी स्त्री रत्न के रूप में विख्यात हैं। वह कहाँ है ? सुना है, जब पाण्डव जूए में हार गये, तब द्रुपद कुमारी कृष्णा भी उन्हीें के साथ वन में चली गयी थी।

अर्जुन ने कहा - राजकुमार! मैं ही पृथा पुत्र अर्जुन हूँ। राजा की सभा में माननीय सदस्य कंक ही युधिष्ठिर हैं। बल्लव भीमसेन हैं, जो तुम्हारे पिता के भोजनालय में रसोइये का कात करते हैं। अश्वों की देखभाल करने वाले ग्रनिथक नकुल हैं और गोशाला के अध्यक्ष तनितपाल सहदेव। सैरन्ध्री को ही द्रौपदी समझो, जिसके कारण सभी कीचक मारे गये। उत्तर बोला - मैंने पहले से जो अर्जुन के दस नाम सुन रक्खे हैं, उन्हें यदि तुम बता दो तो मैं तुम्हारी सारी बातों पर विश्वास कर सकता हूँ। अर्जुन ने कहा - विराट पुत्र! मेरे जो दस नाम हैं और जिन्हें तुमने पहले से ही सुन रक्खा है, उनका वर्णन करता हूँ, सुनो।एकाग्रचित्त हो सावधानी के साथ सबको सुनना। ( वे नाम ये हैं - )अर्जुन, फाल्गुन, जिष्णु, किरीटी, श्वेतवाहन, बीभत्सु, विजय, कृष्ण, सव्यसाची और धनंजय।

उत्तर ने पूछा - किस कारण आपका नाम विजय हुआ और किसलिये आप श्वेतवाहन कहलाते हैं द्व आपके किरीटी नाम धारण करने का क्या कारण है ? और आप सव्यसाची नाम से कैसे प्रसिद्ध हुए ?।।इसी प्रकार आपके अर्जुन, फाल्गुन, बीभत्सु और धनंजय नाम पड़ने का क्या कारण है ? यह सब मुझे ठीक - ठीक बताइये। वीर अर्जुन के विभिन्न नाम पड़ने के जो प्रधान हेतु हैं, वे सब मैंने सुन रक्खे हैं। उन सबको यदि आपउ बता देंगे तो आपकी सब बातों पर मेरा विश्वास हो जायगा। अर्जुन ने कहा - मैं सम्पूर्ण देशों को जीतकर और उनसे ( कर रूप में ) केवल धन लेकर धन के ही बीच में सिथत था, इसलिये लोग मुझे ‘धनंजय’ कहते हैं। जब मैं संग्राम भूमि में रणोन्मत्त योद्धाओं का सामना करने के लिये जाता हूँ, तब उन्हें परास्त किये बिना कभी नहीं लौटता, इसीलिये वीर पुरुष मुझे ‘विजय’ के नाम से जानते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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