चतुर्नवत्यधिकशततम (194) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्त्रमोक्ष पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: चतुर्नवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद
संजय! कृपी का शूरवीर पुत्र अश्वत्थामा शिष्यभाव से विशेष रहस्य सहित सारा धनुर्वेद अपने पिता द्रोणाचार्य से प्राप्त करके युद्धस्थल में उनके बाद वही उस योग्यता का रहा गया है। शस्त्रविद्या में परशुराम के सामान, युद्धकाल में इन्द्र के समान, बल-पराक्रम में कृतवीर्यपुत्र अर्जुन के समान, बुद्धि में बृहस्पति के सद्श्य, स्थिरता एवं धैर्य में पर्वत के तुल्य, तेज में अग्नि के समान, गंभीरता में समुद्र के सदृश और क्रोध में विषधर सर्प के समान नवयुवक अश्वत्थामा संसार का प्रधान रथी और सुदृढ़ धनुर्धर है। उसने श्रम और थकावट को जीत लिया है। वह संग्राम में वायु के समान वेगपूर्वक विचरने वाला तथा क्रोध में भरे हुए यमराज के समान भयंकर है। अश्वत्थामा जब रणभूमि में बाणों की वर्षा करने लगता है, तब धरती भी अत्यन्त पीड़ित हो उठती है। वह सत्य पराक्रमी वीर संग्राम में कभी व्यथित नहीं होता है। वह वेदाध्ययन समाप्त करके स्नातक बन चुका है। ब्रह्मचर्यव्रत की अविध पूरी करके उसका भी स्नातक हो चुका है और धनुर्वेद का भी पारंगत विद्वान है। महासागर तथा दशरथपुत्र श्रीराम के समान उसे कोई क्षुब्ध नहीं कर सकता। उसी अश्वत्थामा ने अपने धर्मिष्ठ पिता आचार्य द्रोण को युद्ध में धृष्टद्युम्न के हाथ से अधर्मपूर्वक मारा गया सुनकर क्या कहा? (हमने सुन रखा है कि) जैसे द्रोणाचार्य का वध करने के लिये पांचालदेशीय द्रुपदकुमार का जन्म हुआ था, उसी प्रकार महात्मा द्रोण ने धृष्टद्युम्न की मृत्यु के लिये अश्वत्थामा को जन्म दिया था। उस नृशंस, पापी, क्रूर और अदूरदर्शी धृष्टद्युम्न के हाथ से आचार्य का वध हुआ सुनकर अश्वत्थामा ने क्या कहा? इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण पर्व के अन्तर्गत नारायणस्त्र मोक्ष पर्व में धृतराष्ट्र पश्न विषयक एक सौ चौरानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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