अशीतितम (80) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
किरीटधारी अर्जुन के उत्तम बाणों से आहत होकर नित्य मद बहाने वाले, कवचधारी एवं मंगलमय लक्षणों से युक्त चार सौ रोषभरे हाथी धराशायी हो गये। उन हाथियों पर सुवर्णमय कवच और सोने के आभूषण धारण करने वाले योद्धा बैठे थे और क्रूर स्वभाव वाले महावत उन्हें अपने पैरों की एड़ियों तथा अंगूठों से आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहे थे। उन सबके साथ गिरे हुए वे हाथी जीव-जन्तुओं सहित धराशायी हुए महान पर्वत के शिखरों के समान सब और पड़े थे। अर्जुन के बाणों से विशेष घायल होकर गिरे हुए उन गजराजों के शरीरों से रणभूमि ढक गयी थी। जैसे अंशुमाली सूर्य बादलों को छिन्न-भिन्न करते हुए प्रकाशित हो उठते हैं, उसी प्रकार अर्जुन का रथ सब ओर से मेघों की घटा के समान काले मदस्त्रावी गजराजों को विदीर्ण करता हुआ वहाँ आ पहुँचा था। मारे गये हाथियों, मनुष्यों और घोड़ों से; टूट-फूटकर बिखरे हुए अनेकानेक रथों से; शस्त्र, यन्त्र तथा कवचों से रहित हुए युद्धकुशल प्राणशून्य योद्धाओं से और इधर-उधर फेंके हुए आयुधों से अर्जुन ने वहाँ के मार्ग को आच्छादित कर दिया था। उन्होंने आकाश में मेघ के समान भयानक वज्रपात के शब्द को तिरस्कृत करने वाले भयंकर स्वर में अपने विशाल गाण्डीव धनुष की टंकार की। तदनन्तर अर्जुन के बाणों से आहत हुई कौरव सेना समुद्र में उठे तूफ़ान से टकराये हुए जहाज़ के समान विदीर्ण हो उठी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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