द्विषष्टितम (62) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: द्विषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
नकुल, सहदेव और द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न –ये एक अक्षौहिणी सेना साथ लेकर युधिष्ठिर के पास दौड़े आये। भीमसेन भी शत्रुओं से घिरे हुए राजा युधिष्ठिर को बचाने के लिये समरांगण में आप के महारथियों को रौंदते हुए उनके पास दौड़े आये। नरेश्वर! वैकर्तन कर्ण ने वहाँ आये हुए सम्पूर्ण महाधनुर्धरों को अपने बाणों की भारी वर्षा से रोक दिया। वे सब महारथी प्रयत्नपूर्वक बाणसमूहों की वर्षा और तोमरों का प्रहार करते हुए भी राधापुत्र को देख न सके। सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रों के पारंगत विद्वान राधापुत्र कर्ण ने बड़ी भारी बाण वर्षा करके उन समस्त धनुर्धरों को आगे बढ़ने से रोक दिया। इसी समय प्रतापी सहदेव ने आकर शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाते हुए तुरंत ही बीस बाणों से दुर्योधन को बींध डाला। सहदेव के बाणों से विद्ध होकर दुर्योधन अनेक शिखरों वाला पर्वत के समान सुशोभित हुआ। खून से लथपथ होकर वह मद की धारा बहाने वाले मदमत्त हाथी के समान जान पड़ता था। रथियों में श्रेष्ठ राधापुत्र कर्ण आपके पुत्र को तेज बाणों से अत्यन्त घायल हुआ देख कुपित होकर दौड़ा। दुर्योधन की वैसी अवस्था देख उसने शीघ्र अपना अस्त्र प्रकट किया और उसी के द्वारा युधिष्ठिर की सेना एवं द्रुपद पुत्र को घायल कर दिया। राजन! महामना सूतपुत्र कर्ण की मार खाकर उसके बाणों से पीड़ित हो युधिष्ठिर की सेना सहसा भाग चली। सूतपुत्र कर्ण के धनुष से छूटकर परस्पर गिरते हुए नाना प्रकार के बाण अपने फलों द्वारा पहले के गिरे हुए बाणों के पंखों में जुड़ जाते थे। महाराज! आकाश में परस्पर टकराते हुए बाण समूहों की रगड़ से आग प्रकट हो जाती थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज