महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 61 श्लोक 64-73

एकषष्टितम (61) अध्याय: कर्ण पर्व

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महाभारत: कर्ण पर्व:एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 64-73 का हिन्दी अनुवाद

जैसे इन्‍द्र वज्र के द्वारा असुरों का संहार करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन ने हाथियों से ही हाथियों को मार डाला। तत्‍पश्चात हाथियों का संहार करते हुए भीमसेन ने समरभूमि में अपने बाण समूहों द्वारा सारे आकाश को उसी प्रकार ढक दिया, जैसे टिड्डियों के दलों से वृक्ष आच्‍छादित हो जाता है। इसके बाद भीमसेन ने जैसे वायु मेघों की घटा को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार वहाँ एकत्र हुए हाथियों के सहस्रों समूहों को वेगपूर्वक नष्ट कर दिया। सोने और मणियों की जालियों से ढके हुए वे हाथी युद्धस्‍थल में बिजलियों सहित मेघों के समान अधिक प्रकाशित हो रहे थे।

राजन! भीमसेन की मार खाकर सारे हाथी भाग चले। कितने ही गजराज हृदय फट जाने के कारण पृथ्‍वी पर गिर पड़े। गिरे और गिरते हुए सुवर्णभूषित हाथियों से ढकी हुई रणभूमि ऐसी शोभा पा रही थी, मानो वहाँ ढेर के ढेर पर्वत खण्‍ड बिखरे पड़े हों। दीप्तिमती प्रभा तथा रत्नों के आभूषण धारण करके गिरे हुए हाथी सवारों से वह भूमि वैसी ही शोभा पा रही थी, मानो पुण्‍य क्षीण हो जाने पर स्वर्गलोक के ग्रह वहाँ भूतल पर गिर पड़े हो। तदनन्‍तर भीमसेन के बाणों से आहत हो फूटे गण्‍डस्‍थल, विदीर्ण कुम्‍भस्‍थल और छिन्न-भिन्न शुण्‍डदण्‍ड वाले सैकड़ों हाथी युद्धस्‍थल में भागने लगे। भय से पीड़ित हुए कितने ही पर्वताकार हाथी अपने सारे अंगों में बाणों से विद्ध होकर भय से पीड़ित हो रक्त वमन करते हुए भागे जा रहे थे। उस समय विभिन्न धातुओं के कारण विचित्र दिखायी देनेवाले पर्वतों के समान उनकी शोभा हो रही थी। धनुष खींचते हुए भीमसेन की चन्‍दन और अगुरु से चर्चित भुजाएं मुझे दो बड़े सर्पों के समान दिखायी देती थीं। बिजली की गड़गड़ाहट के समान उनकी प्रत्‍यच्चा की भयंकर टंकार सुनकर बहुत से हाथी मल मूत्र करते हुए बड़े जोर से भाग रहे थे। राजन! अकेले बुद्धिमान भीमसेन का वह कर्म समस्‍त प्राणियों का संहार करते हुए रुद्र के समान जान पड़ता था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्ण पर्व में संकुलयुद्ध विषयक इकसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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