महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 68 श्लोक 1-15

अष्‍टषष्टितम (68) अध्‍याय: उद्योग पर्व (संजययान पर्व)

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महाभारत: उद्योग पर्व: अष्‍टषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

संजय का धृतराष्‍ट्र को भगवान श्रीकृष्‍ण की महिमा बतलाना

  • संजय ने कहा- राजन! अर्जुन तथा भगवान श्रीकृष्‍ण दोनों बड़े सम्मानित धनुर्धर हैं। वे यद्यपि सदा साथ रहने वाले नर और नारायण हैं, तथापि लोक कल्याण की कामना से पृथक-पृथक प्रकट हुए हैं और सब कुछ करने में समर्थ हैं। (1)
  • प्रभो! उदारचेता भगवान वासुदेव का सुदर्शन नामक चक्र उनकी माया से अलक्षित होकर उनके पास रहता है। उसके मध्‍यभाग का विस्तार लगभग साढे़ तीन हाथ का है। वह भगवान के संकल्प के अनुसार विशाल एवं तेजस्वी रूप धारण करके शत्रुसंहार के लिये प्रयुक्त होता है। (2)
  • कौरवों पर उसका प्रभाव प्रकट नहीं है। पाण्‍डवों को वह अत्यन्त प्रिय है। वह सबके सार-असारभूत बल को जानने में समर्थ और तेज:पुञ्ज से प्रकाशित होने वाला है। (3)
  • महाबली भगवान श्रीकृष्‍ण ने अत्यन्त भयंकर प्रतीत होने वाले नरकासुर, शम्बरासुर, कंस तथा शिशुपाल को भी खेल-ही-खेल में जीत लिया। (4)
  • पूर्णत: स्वाधीन एवं श्रेष्‍ठस्वरूप पुरुषोत्तम श्रीकृष्‍ण मन के संकल्प मात्र से ही भूतल, अन्तरिक्ष तथा स्वर्गलोक को भी अपने अधीन कर सकते हैं। (5)
  • राजन! आप जो बारंबार पाण्‍डवों के विषय में, उनके सार या असारभूत बल को जानने के‍ लिये मुझसे पूछते रहते हैं, वह सब आप मुझसे संक्षेप में सुनिये। (6)
  • एक ओर सम्पूर्ण जगत हो और दूसरी ओर अकेले भगवान श्रीकृष्‍ण हों तो सारभूत बल की दृष्टि से वे भगवान जनार्दन ही सम्पूर्ण जगत से बढ़कर सिद्ध होंगे। (7)
  • श्रीकृष्‍ण अपने मानसिक संकल्प मात्र से इस सम्पूर्ण जगत को भस्म कर सकते हैं; परंतु उन्हें भस्म करने में यह सारा जगत समर्थ नहीं हो सकता। (8)
  • जिस ओर सत्य, धर्म, लज्जा और सरलता है, उसी ओर भगवान श्रीकृष्‍ण रहते हैं; और जहाँ भगवान श्रीकृष्‍ण हैं, वहीं विजय है। (9)
  • समस्त प्राणियों के आत्मा पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्‍ण खेल-सा करते हुए ही पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा स्वर्गलोक का संचालन करते हैं। (10)
  • वे इस समय समस्त लोक को मोहित-सा करते हुए पाण्‍डवों के मिस से आपके अधर्मपरायण मूढ़ पुत्रों को भस्म करना चाहते हैं। (11)
  • ये भगवान केशव ही अपनी योगशक्ति से निरन्तर काल-चक्र, संसारचक्र तथा युगचक्र को घुमाते रहते हैं। (12)
  • मैं आपसे यह सच कहता हूँ कि एकमात्र भगवान श्री‍कृष्‍ण ही काल, मृत्यु तथा चराचर जगत के स्वामी एवं शासक हैं। (13)
  • महायोगी श्री‍हरि सम्पूर्ण जगत के स्वामी एवं ईश्वर होते हुए भी खेती को बढा़ने वाले किसान की भाँति सदा नये-नये कर्मों का आरम्भ करते रहते हैं। (14)
  • भगवान केशव अपनी माया के प्रभाव से सब लोगों को मोह में डाले रहते हैं; किंतु जो मनुष्‍य केवल उन्हीं की शरण ले लेते हैं, वे उनकी माया से मोहित नहीं होते हैं।(15)
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अन्तर्गत यानसंधिपर्व में संजयवाक्यविषयक अड़सठवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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