चतुरधिकशततम (104) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद
यद्यपि त्रिगर्तराज सुशर्मा तथा अन्य श्रेष्ठ नरेशों ने भी बार बार रोकने का प्रयत्न किया, तथापि वे सैनिक युद्ध में ठहर न सके। उस सेना को भागती देख आपके पुत्र दुर्योधन ने रणभूमि में भीष्म को आगे करके सम्पूर्ण सेनाओं के साथ महान प्रयत्नपूर्वक धनंजय पर धावा किया। प्रजानाथ! उसके आक्रमण का उद्देश्य था त्रिगर्तराज के जीवन की रक्षा। केवल दुर्योधन ही अपने समस्त भाइयों के साथ नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करता हुआ समरभूमि में खड़ा रहा। शेष सब मनुष्य भाग गये। राजन! उसी प्रकार पाण्डव भी कवच बाँधकर सम्पूर्ण उद्योग के साथ अर्जुन की रक्षा के लिये उसी स्थान पर गये, जहाँ भीष्म स्थित थे। गाण्डीवधारी अर्जुन के भयंकर पराक्रम को जानने के कारण वे लोग उत्साह के साथ कोलाहल और सिंहनाद करते हुए सब ओर से भीष्म पर आक्रमण करने लगे। तदनन्तर ताल चिह्नित ध्वजा वाले शूरवीर भीष्म ने झुकी हुई गाँठ वाले बाणों से युद्ध में पाण्डव सेना को आच्छादित कर दिया। महाराज! तत्पश्चात् समस्त कौरव एकत्र संगठित होकर दोपहर होते होते पाण्डवों के साथ घोर युद्ध करने लगे। शूरवीर सात्यकि कृतवर्मा को पाँच बाणों से घायल करके समरभूमि में सहस्रों बाणों की वर्षा करते हुए खड़े रहे। इसी प्रकार राजा द्रुपद ने द्रोणाचार्य को तीखे बाणों से एक बार घायल करके सत्तर बाणों द्वारा पुनः घायल किया और पाँच बाणों से उनके सारथियों को भी भारी चोट पहुँचायी। भीमसेन ने अपने प्रपितामह राजा बाह्लीक को बाणों द्वारा घायल करके वन में सिंह के समान बड़े जोर से गर्जना की। अर्जुनकुमार अभिमन्यु को चित्रसेन ने बहुत से बाणों द्वारा घायल कर दिया था, तो भी शूरवीर अभिमन्यु सहस्रों बाणों की वर्षा करता हुआ युद्धभूमि में डटा रहा। उसने तीन बाणों से समरांगण में चित्रसेन को अत्यन्त घायल कर दिया। राजन! जैसे आकाश में दो महाघोर ग्रह बुध और शनैश्वर सुशोभित होते हैं, उसी प्रकार दो महान वीर चित्रसेन और अभिमन्यु रणभूमि में शोभा पा रहे थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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