त्रिंश (30) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
महाभारत: शल्य पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
संजय ने कहा- राजन! जब महामनस्वी क्षत्रिय राजाओं की पत्नियां भाग चलीं और सब लोगों के पलायन करने से सारा शिबिर सूना हो गया, उस समय पूर्वोक्त तीनों रथी अत्यन्त उद्विग्न हो गये। सायंकाल में विजयी पाण्डवों की गर्जना सुनकर और अपने सारे शिबिर के लोगों को भागा हुआ देख कर राजा दुर्योधन को चाहने वाले उन तीनों महारथियों को वहाँ ठहरना अच्छा न लगा; इसलिये वे उसी सरोवर के तट पर गये। राजन! इधर धर्मात्मा युधिष्ठिर भी रणभूमि में दुर्योधन के वध की इच्छा से बड़े हर्ष के साथ भाइयों सहित विचर रहे थे। विजय के अभिलाषी पाण्डव अत्यन्त कुपित होकर आपके पुत्र का पता लगाने लगे; परंतु यत्नपूर्वक खोज करने पर भी उन्हें राजा दुर्योधन कहीं दिखायी नहीं दिया। वह हाथ में गदा लेकर तीव्र वेग से भागा और अपनी माया से जल को स्तम्भित करके उस सरोवर के भीतर जा घुसा। दुर्योधन की खोज करते-करते जब पाण्डवों के वाहन बहुत थक गये, तब सभी पाण्डव सैनिकों सहित अपने शिबिर में आ कर ठहर गये। तदनन्तर जब कुन्ती के सभी पुत्र शिबिर में विश्राम करने लगे, तब कृपाचार्य, अश्वत्थामा और सात्वतवंशी कृतवर्मा धीरे-धीरे उस सरोवर के तट पर जा पहुँचे। जिस में राजा दुर्योधन सो रहा था, उस सरोवर के समीप पहुँच कर, वे जल में सोये हुए उस दुर्धर्ष नरेश से इस प्रकार बोले-‘राजन! उठो और हमारे साथ चल कर युधिष्ठिर से युद्ध करो। विजयी होकर पृथ्वी का राज्य भोगो अथवा मारे जाकर स्वर्गलोक प्राप्त करो। ‘प्रजानाथ दुर्योधन! भरतनन्दन! तुमने भी तो पाण्डवों की सारी सेना का संहार कर डाला है। वहाँ जो सैनिक शेष रह गये हैं, वे भी बहुत घायल हो चुके हैं; अतः जब तुम हमारे द्वारा सुरक्षित होकर उन पर आक्रमण करोगे तो वे तुम्हारा वेग नहीं सह सकेंगे; इसलिये तुम युद्ध के लिये उठो’। दुर्योधन बोला- मैं ऐसे जन संहारकारी पाण्डव कौरव संग्राम से आप सभी नरश्रेष्ठ वीरों को जीवित बचा हुआ देख रहा हूं, यह बड़े सौभाग्य की बात है। हम सब लोग विश्राम करके अपनी थकावट दूर कर लें तो अवश्य विजयी होंगे। आप लोग भी बहुत थके हुए हैं और हम भी अत्यन्त घायल हो चुके हैं। उधर पाण्डवों का बल बढ़ा हुआ है; इसलिये इस समय मेरी युद्ध करने की रुचि नहीं हो रही है। वीर! आपके मन में जो युद्ध के लिये महान उत्साह बना हुआ है, यह कोई अद्भुत बात नहीं है। आप लोगों का मुझ पर महान प्रेम भी है, तथापि यह पराक्रम प्रकट करने का समय नहीं है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज