पंचम (5) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: पंचम अध्याय: श्लोक 1-16 का हिन्दी अनुवाद
इतने ही में उसने देखा कि वह भयानक वन चारों ओर से जाल से घिरा हुआ है और एक बड़ी भयानक स्त्री ने अपनी दोनों भुजाओं से उसको आवेष्ठित कर रखा है। पर्वतों के समान ऊँचे और पाँच सिर वाले नागों तथा बड़े-बड़े गगनचुम्बी वृक्षों से वह विशाल वन व्याप्त हो रहा है। उस वन के भीतर एक कुआँ था, जो घासों से ढकी हुई सुदृड़ लताओं के द्वारा सब ओर से आच्छादित हो गया था। वह ब्राह्मण उस छिपे हुए कुएँ में गिर पड़ा; परंतु लता बेलों से व्याप्त होने के कारण वह उस में फँस कर नीचे नहीं गिरा, ऊपर ही लटका रह गया। जैसे कटहल का विशाल फल वृन्त में बँधा हुआ लटकता रहता है, उसी प्रकार वह ब्राह्मण ऊपर को पैर और नीचे को सिर किये उस कुएँ में लटक गया। वहाँ भी उसके सामने पुन: दूसरा उपद्रव खड़ा हो गया। उसने कूप के भीतर एक महाबली महानाग बैठा हुआ देखा तथा कुएँ के ऊपरी तट पर उसके मुख बन्ध के पास एक विशाल हाथी को खड़ा देखा, जिनके छ: मुँह थे। वह सफेद और काले रंग का था तथा बारह पैरों से चला करता था। वह लताओं तथा वृक्षों से घिरे हुए उस कूप में क्रमश: बढ़ा आ रहा था। वह ब्राह्मण, जिस वृक्ष की शाखा पर लटका था, उसकी छोटी-छोटी टहनियों पर पहले से ही मधु के छत्तों से पैदा हुई अनेक रुप वाली, घोर एवं भयंकर मुधमक्खियाँ मधु को घेरकर बैठी हुई थी। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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