महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 109 श्लोक 23-37

नवाधिकशततम (109) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: नवाधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-37 का हिन्दी अनुवाद

राजन! तदनन्‍तर पाण्‍डव और हिडिम्‍बाकुमार घटोत्कच सबने उद्विग्‍न होकर सब ओर से अलम्बुष पर पैने बाणों की वर्षा आरम्‍भ कर दी। विजय से उल्‍लासित होने वाले पाण्‍डवों द्वारा समरभूमि में विद्व होकर मर्त्‍यधर्म को प्राप्‍त हुए अलम्बुष से कुछ भी करते न बना। तब समर कुशल महाबली भीमसेन-कुमार ने अलम्बुष को उस अवस्‍था में देखकर मन ही मन उसके वध का निश्‍चय किया। उसके जले हुए पर्वत शिखर तथा कटे-छटे कोयले के पहाड़ के समान प्रतीत होने वाले राक्षसराज अलम्बुष के रथ पर पहुँचने के लिये महान वेग प्रकट किया। क्रोध में भरे हुए हिडिम्‍बाकुमार ने अपने रथ से अलम्बुष के रथ पर कूदकर उसे पकड़ लिया और जैसे गरुड़ सर्प को टांग लेता है, उसी प्रकार उसने भी अलम्बुष को रथ से उठा लिया।। दोनों भुजाओ से अलम्बुष को ऊपर उठा कर घटोत्कच ने बारंबार घुमाया और जैसे जल से भरे हुए घड़े को पत्‍थर पर पटक दिया जाय, उसी प्रकार उसे शीघ्र ही पृथ्‍वी पर दे मारा। घटोत्कच में बल और फुर्ती दोनों विद्यमान थे। वह अद्भुत पराक्रम से सम्‍पन्‍न था। उसने रणक्षेत्र में कुपित होकर आपकी समस्‍त सेनाओं को भयभीत कर दिया। वीर घटोत्कच के द्वारा मारे गये शालकंट कटा के पुत्र अलम्बुष के सारे अंग फट गये थे। उसकी हड्डियां चूर-चूर हो गयीं थी और वह बड़ा भयंकर दिखायी देता था।

उस निशाचर अलम्बुष के मारे जाने पर कुन्‍ती के सभी पुत्र प्रसन्‍नचित्त हो सिंहनाद करने और वस्‍त्र हिलाने लगे।। भरतश्रेष्‍ठ! टूट-फूट कर गिरे हुए पर्वत के समान महाबली राक्षसराज अलम्बुष को मारा गया देख आपके शूरवीर योद्धा तथा उनकी चारों सेनाएं हाहाकार करनी लगी। पृथ्‍वी पर अकस्‍मात टूट कर गिरे हुए मंगलमह के समान पराक्रमी हुए उस राक्षस को बहुत से मनुष्‍य कौतूहल-वश देखने लगे। जैसे इन्‍द्र ने बलासुर का वध करके महान सिंहनाद किया था, उसी प्रकार घटोत्कच ने उस बलवानों में श्रेष्‍ठ अलम्बुष को मारकर बड़े जोर से गर्जना की। तदनन्‍तर घटोत्कच धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर के पास जाकर हाथ जोड़ मस्‍तक नवाकर अपना कर्म निवेदन करता हुआ उनके चरणों में गिर पड़ा। राजन! तब ज्‍येष्‍ठ पाण्‍डव ने उसका मस्‍तक सूंघकर उसे हदय से लगा लिया और कहा- ‘वत्‍स! मैं तुम पर बहुत प्रसन्‍न हूँ।’ उस समय युधिष्ठिर के नेत्र हर्ष से खिल उठे थे। शालकंटकटा के पुत्र राक्षस अलम्बुष को जब घटोत्कच ने पृथ्‍वी पर रगड़कर मार डाला, तब सब लोग बहुत प्रसन्‍न हुए।। पके हुए अलम्बुष (मुंडिर) फल के समान अपने शत्रु अलम्बुष को मारकर घटोत्कच वह दुष्‍कर पराक्रम करने के कारण अपने पिता पाण्‍डवों तथा बन्‍धु-बान्‍धवों से सम्‍मानित एंव प्रशसित हो उस समय बड़ी प्रसन्‍नता का अनुभव करने लगा। बाणों की सनसनाहट के शब्‍द से मिला हुआ बड़ा भारी आनन्‍द कोलाहल प्रकट हुआ। उसे सुनकर समस्‍त पाण्‍डव बड़े प्रसन्‍न हुए। वह आनन्‍द ध्‍वनि जगत में बहुत दूर तक फैल गयी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तगर्त जयद्रथपर्व में अलम्‍बुवधविषयक एक सौ नवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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