महाभारत विराट पर्व अध्याय 64 श्लोक 41-49

चतुःषष्टितम (64) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: चतुःषष्टितम अध्याय: श्लोक 41-49 का हिन्दी अनुवाद


वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ‘आकाश में दोपहर के समय प्रचण्ड किरणों से तपते हुए सूर्य की ओर जैसे कोई देख नहीं सकता, उसी प्रकार प्रतापी पाण्डु पुत्र की ओर कौरव सैनिक आँख उठाकर देखने में भी असमर्थ हो गये हैं। ‘इसी प्रकार गंगा नन्दन भीष्म की ओर भी कोई मनुष्य देखने का साहस नहीं करता है। ‘दोनों वीर अपने अद्भुत कार्यों के लिये संग्राम के लिये संसार में प्रसिद्ध हैं। दोनों के पराक्रम उग्र हैं। दोनों एक सा पराक्रम दिखाने वाले तथा युद्ध में अत्यन्त दुर्जय हैं’। जनमेजय! चित्रसेन के ऐसा कहने पर देवराज इन्द्र ने दिव्य पुष्पों की वर्षा करके अर्जुन और भीष्म के इस अद्भुत संग्राम के प्रति आदर प्रकट किया। तदनन्तर शान्तनु नन्दन भीष्म ने ( कौरव सेना को ) घायल करने वाले सव्यसाची अर्जुन के देखते देखते बाण संधान करके उनका बाँयाँ पाश्र्व बींध डाला।

तब अर्जुन ने भी हँसकर मोटी धार एवं गीध की पाँख वाले बाण से सूर्य के समान तेजस्वी भीष्म का धनुष फिर काट दिया। तत्पश्चात कुन्ती पुत्र धनंजय ने विजय के लिये प्रयत्नशील पराक्रमी भीष्म की छाती में दस बाण मारकर गहरी चोट पहुँचायी। उससे पीड़ित हो रण दुर्धर्ष वीर महाबाहु भीष्म रथ का कूबर पकड़कर बहुत देर तक निश्चेष्ट बैठे रह गये। वे बेहोश थे। ‘ऐसी दशा में सारथि को रथी की रक्षा करनी चाहिये’ इस उपदेश का स्मरण करके महारथी भीष्म की प्राण रक्षा के उद्देश्य से उनके रथ और घोड़ों को काबू में रखने वाला सारथि उन्हें संग्राम भूमि से दूर हटा ले गया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में भीष्म के रण भूमि से हटाये जाने से सम्बन्ध रखने वाला चैंसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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