महाभारत विराट पर्व अध्याय 60 श्लोक 13-27

षष्टितम (60) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

Prev.png

महाभारत: विराट पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 13-27 का हिन्दी अनुवाद


पार्थ! यदि इस समय साक्षात् इन्द्र भी तेरे लिये युद्ध करने आयें, तो भी युद्ध में पराक्रम दिखाते हुए मुझसे किसी प्रकार की व्यथा न होगी। कुन्ती कुमार! मेरे साथ युद्ध का जो तेरा हौसला है, वह अभी - अभी प्रकट हुआ है। अतः अब मेरे साथ तेरा युद्धउ होगा और आज तू मेरा बल स्वयं देख लेगा।

अर्जुन बोले - राधा पुत्र! अभी कुछ ही देर पहले की बात है, मेरे सामने युद्ध से पीठ दिखाकर तू भाग गया था, इसीलिये अब तक जी रहा है; किंतु तेरा छोटा भाई मारा गया। तेरे सिवा दूसरा कौन ऐसा होगा, जो अपने भाई को मरवाकर और युद्ध का मुहाना छोड़कर ( भाग जाने के बाद भी ) भले मानसों के बीच में चाड़ा होकर डींग मारेगा ?। वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! अर्जुन किसी से भी परास्त होने वाले नहीं थे। वे कर्ण से उपर्युक्त बातें कहकर कवच को भी विदीर्ण कर देने वाले बाण छोड़ते हुए उसकी ओर बढ़े। महारथी कर्ण ने बड़ी प्रसन्नता के साथ मेघ के सदृश बाणों की वृष्टि करने वाले अर्जुन को अपने सायकों की भारी बौछार करके रोका। फिर तो आकाश में सब ओर भयंकर बाणों के समूह उड़ने लगे। अर्जुन से यह सहन न हो सका; अतः उनहोंने झुकी हुई गाँठ एवं तीखी नोक वाले बाण के घोड़ों को बींध डाला। भुजाओं में भी गहरी चोट पहुँचायी और हाथों के दस्तानों को भी पृथक् पृथक् विदीर्ण कर दिया।

इतना ही नहीं, कर्ण के भाथा लटकाने की रस्सी को भी काट गिराया। तब कर्ण ने ( अलग रक्खे हुए ) छोटे तरकस से दूसरे बाण लेकर पाण्डु नन्दन अर्जुन के हाथ में चोट पहुँचायी। इससे उनकी मुट्ठी ढीली पड़ गयी। तब महाबाहु पार्थ ने कर्ण का धनुष काट दिया। यह देख कर्ण ने अर्लुन वपर शक्ति चलाई; किंतु पार्थ ने उसे बाणों से नष्ट कर दिया। इतने में ही राधा पुत्र कर्ण के बहुत से सैनिक वहाँ आ पहुँचे; किंतु अर्जुन ने गाण्डीव द्वारा छोड़े हुए बाणों से मारकर उन सबको यमलोक भेज दिया। तत्पश्चात् बीभत्सु ने भार ( शत्रुओं के आघात ) सहने में समर्थ तीखे बाणों द्वारा, जो धनुष को कान तक खींचकर छोड़े गये थे, कर्ण के घोड़ों को घायल कर दिया। वे घोड़े मरकर पृथ्वी पर गिर पड़े। तत्पश्चात् पराक्रमी कुन्ती कुमार ने महान् तेजस्वी तथा अग्नि के समान प्रज्वलित दूसरे बाण द्वारा कर्ण की छाती में आघात किया। वह बाण कर्ण का कवच काटकर उसके वक्षःस्थल के भीतर घुस गया। इससे कर्ण को मूर्च्छा आ गयी और उसे किसी भी बात की सुध न रही। कर्ण को उस चोट से बड़ी भारी वेदना हुई और वह युद्ध भूमि को छोड़कर उत्तर दिशा की ओर भागा। यह देख अर्जुन और उत्तर दोनों महारथी जोर जोर से सिंहनाद करने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में कर्ण का पलायन विषयक साठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः